विश्वकर्मा

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

विश्वकर्मा संज्ञा पुं॰ [सं॰ विश्वकर्मन्]

१. समस्त संसार की रचना करनेवाला, ईश्वर ।

२. ब्रह्मा ।

३. सूर्य ।

४. एक प्रसिद्ध आचार्य अथवा देवता जो सब प्रकार के शिल्पशास्त्र के आविष्कर्ता और सर्वश्रेष्ठ ज्ञाता माने जाते हैं । विशेष—पुराणनुसार ये आठ वसुऔं में से नामक वसु के पुत्र थे और देवताओं के लिये विमान तथा प्रासाद आदि बनाया करते थे । आग्नेयास्त्र इन्हीं का बनाया हुआ माना जाता है । महाभारत में ये सर्वश्रेष्ठ शिल्पी और अमर कहे गए हैं रामायण के अनुसार इन्होंने राक्षसों के लिये लंका बनाई थी । वेदों में ये सर्वदर्शी, सर्वनियता और विश्वज्ञ कह े गए है । वेदों में कहीं कहीं 'विश्वरकर्मा' शब्द इंद्र सूर्य, प्रजापति, विष्णु आदि के अर्थ में भी आया है । महाभारत के अनुसार इनकी माता का नाम लावण्यमयी था और सूर्य की पत्नी संज्ञा इन्हीं की कन्या थी । कहते हैं, जब सूर्य के प्रखर ताप को संज्ञा न सह सकी, तब इन्होंने उसका आठवाँ अंस काट लिया और उससे सुदर्शन चक्र, त्रिशूल आदि बनाकर देवताओं में बाँटे । सृष्टि की रचना करने के कारण ये प्रजापति और त्वष्टा भी कहे जाते हैं । भाद्रपद की संक्राति को इनकी पूजा हुआ करती है ।

५. शिव का नाम ।

६. चरक के अनुसार शरीर में की चेतना नामक धातु ।

७. बढ़ई ।

८. मेमार । राज ।

९. लोहार ।

१०. सूर्य की सात किरणों में से एक किरण (को॰) ।

११. एक मुनि का नाम (को॰) ।

१२. एक परिमाण । एक माप (को॰) ।