षोडश

विक्षनरी से

हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

षोडश श्रृंगार संज्ञा पुं॰ [सं॰ षोडशश्रृङ्गार] पूर्ण श्रृंगार जिसके अंतर्गत सोलह बातें हैं । पूरा सिंगार । विशेष दे॰ 'श्रृंगार-२' तथा 'सोलह सिंगार' । विशेष—प्राचीन संस्कृत साहित्य में षोडश श्रृंगार की गणना अज्ञात प्रतीत होती है । अनुमानतः यह गणना वल्लभदेव की सुभाषितावली (१५ वीं शती या १२ वीं शती) में प्रथम बार आती है । उनके अनुसार वे इस प्रकार हैं— आदौ मज्जनचीरहारतिलकं नेत्राञ्जनं कुडले, नासामौक्तिककेशपाशरचना सत्कंचुकं नूपुरौ । सौगन्ध्य करकङ्कणं चरणयो रागो रणन्मेखला, ताम्बूलं करदर्पण चतुरता श्रृंगारका षोडण । । अर्थात् (१) मज्जन, (२) चीर, (३) हार, (४) तिलक, (५) अंजन, (६) कुंडल, (७) नासामुक्ता, (८) केशविन्यास, (९) चोली (कंचुक), (१०) नूपुर, (११) अंगराग (सुगंध), (१२) कंकण, (१३) चरणराग, (१४) करधनी, (१५) तांबूल तथा (१६) करदर्पण (आरसो नामक अंगूठी) । पुनः १६ वीं शती में श्रीरूपगोस्वामी के उज्वलनीलमणि में श्रृंगार की यह सूची इस प्रकार गिनाई गई है — स्नातानासाग्रजाग्रन्मणिरसितपटा सूत्रिणी बद्धवेणिः सोत्त सा चर्चिताङ्गी कुसुमितचिकुरा स्त्रग्विणी पद्महस्ता । ताभ्बूलास्योरुबिन्दुस्तबकितचिबुका कज्जलाक्षी सुचित्रा । राधालक्चोज्वलांघ्रिः स्फुरति तिलकिनी षोडशाकल्पिनीयम् । । उक्त प्रमाण से श्रृंगारों की यह सूची बनती है— अर्थात् (१) स्नान, (२) नासा मुक्ता, (३) असित पट, (४) कटि सूत्र (करधनी), (५) वेणीविन्यास, (६) कर्णावतंस, (७) अंगों का चर्चित करना, (८) पुष्पमाल, (९) हाथ में कमल, (१०) केश में फूल खोंसना, (११) तांबूल, (१२) चिबुक का कस्तुरी से चित्रण, (१३) काजल, (१४) शरीर पर पत्रावली, मकरीभंग आदि का चित्रण, (१५) अलक्तक और (१६) तिलक । यहाँ वल्लभदेव के तथा श्रीरूपगोस्वामी के काल तक की श्रृंगार सूची में विभिन्नता स्पष्ट है । हिंदी कवियों में जायसी के अनुसार ये श्रृंगार यों हैं—(१) मज्जन, (२) स्नान (जायसी ने मज्जन, स्नान को अलग रखा है), (३) वस्त्र, (४) पत्रावली, (५) सिंदूर, (६) तिलक, (७) कुंडल, (८) अंजन, (९) अधरों का रंगना, (१०) तांबूल, (११) कुसुमगंध, (१२) कपोलों पर तिल, (१३) हार, (१४) कंचुकी , (१५) छुद्रघंटिका ओर (१६) पायल । रीतिकाव्य के आचार्य केशवदास ने भी सोलह श्रृंगार की गणना इस प्रकार की है— प्रथम सकल सुचि, मंजन अमल बास, जावक, सुदेस किस पास कौ सम्हारिबो । अंगराग, भूषन, विविध मुखबास-राग, कज्जल ललित लोल लोचन निहारिबो । बोलन, हँसन, मृदुचलन, चितौनि चारु, पल पल पतिब्रत प्रन प्रतिपालिबो । 'केसौदास' सो बिलास करहु कुँवरि राधे, इहि बिधि सोरहै सिंगारन सिंगारिबो । उक्त छंद की टीका करते हुए सरदार कवि ने ये श्रृंगार यों गिने हैं—(१) उबटन, (२) स्नान, (३) अमल पट्ट, (४) जावक, (५) वेणी गूँथना, (६) माँग में सिंदूर, (७) ललाट में खौर, (८) कपोलों में तिल, (९) अंग में केसर लेपन, (१०) मेंहदी, (११) पुष्पाभूषण, (१२) स्वर्णाभूषण, (१३) मुखवास (१४) दंत मंजन, (१५) तांबूल और (१६) काजल । यहाँ स्पष्ट है कि टीकाकार ने कई उपकरण अपनी ओर से जोड़े हैं । नगेंद्रनाथ वसु ने हिंदी विश्वकोश में इन श्रृंगारों को गणना निम्नलिखित दी है— (१) उबटन, (२) स्नान, (३) वस्त्रधारण, (४) केश प्रसाधन, (५) काजल, (६) सिंदूर से माँग भरना, (७) महावर, (८) तिलक, (९) चिबुक पर तिल, (१०) मेंहदी, (११) सुगंध लगाना, (१२) आभूषण, (१३) पुष्पमाल, (१४) मिस्सी लगाना, (१५) तांबूल, और (१६) अधरों को रंगना । उक्त विभिन्न सूचियों से पता चलता है कि षोडश श्रृंगार को कोई निश्चित परिभाषा या सूची नहीं रही है । देश और काल के अनुसार उसमें भिन्नता होती रही ।