साट
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]साट ^१ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ सट से अनु॰] दे॰ 'साँट' ।
साट † ^२ वि॰ [सं॰ षष्ठि, प्रा॰ सट्ठि, हिं॰ साठ] दे॰ 'साठ' । उ॰— साट घरी मों साई की बीसर, पर नही मोकूँ येक घरी हो ।—दक्खिनी॰, पृ॰ १३२ ।
साट पु ^३ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ गाँठ का अनु॰] साजिश । षडयंत्र । उ॰—शेख तकी बादशाह के पीर का विरुद्धता करना औ र ब्राह्मणों तथा मुल्लाओं की साट से कबीर साहब के साथ कुव्यवहार करना ।—कबीर मं॰, पृ॰ १०१ ।
साट पु ^४ संज्ञा पुं॰ [देशी सट्ट] सट्टा । विनिमय । बदला । उ॰— खंजर नेत विसाल, गय चाही लागइ चक्ख । एकण साटइ मारुवी, देह एराकी लक्ख ।—ढोला॰, दू॰ ४५८ ।