हड़
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]हड़ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ हरीतकी]
१. बड़ा पेड़ जिसके पत्ते महुए के से चौड़े चौड़े होते है और शिशिर में झड़ जाते हैं । विशेष—यह उत्तर भारत, मध्य प्रदेश, बंगाल और मद्रास के जंगलों में पाया जाता है । इसकी लकड़ी बहुत चिकनी, साफ, मजबूत और भूरे रंग की होती है जो इमारत में लगाने और खेती तथा सजावट के सामान बनाने के काम में आती है । इसका फल व्यापार की एक बड़ी प्रसिद्ध वस्तु है और अत्यंत प्राचीन काल से औषध के रूप में काम में लाया जाता है । वैद्यक में हड़ के बहुत अधिक गुण लिखे गए हैं । हड़ भेदक और कोष्ठ शुद्ध करनेवाली औषधों में प्रधान है और संकोचक होने पर भी पाचक चूर्णों में इसका योग रहा करता है । हड़ की कई जातियाँ होती हैं जिनसें से दो सर्वसाधारण में प्रसिद्ध हैं—छोटी हड़ और बड़ी हड़ या हर्रा । छोटी 'जोंगी हड़' कहलाती है । वैद्यक में हड़ शीतल, कसैली, मूत्र लानेवाली और रेचक मानी जाती है । पाचक, चूर्ण आदि में छोटी हड़ का ही अधिकतर व्यवहार होता है । त्रिफला में बड़ी हड़ (हर्रा) ली जाती है । बड़ी हड़ का व्यवहार चमड़ा सिझाने, कपड़ा रँगने आदि में बहुत अधिक होता है । हड़ में कसाव- सार बहुत अधिक होता है, इससे यह संकोचक होती है । वैद्यक में हड़ सात प्रकार की कही गई है—विजया, रोहिणी, पूतना, अमृता, अभया, जीवंती और चेतकी ।
२. एक प्रकार का गहना जो हड़ के आकार का होता है और नाक में पहना जाता है । लटकन ।
हड़ वा संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ हरिद्रा] एक प्रकार की हल्दी जो कटक में होती है ।