हीँग

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

हीँग संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ हिङ्गु]

१. एक छोटा पौधा जो अफगनिस्तान और फारस में आपसे आप और बहुत होता है ।

२. इस पौधे का जमाया हुआ दुध या गोंद जिसमें बड़ौ तीक्ष्ण गंध होती है और जिसका व्यवहार दवा और नित्य के मसाले में बघार के लिये होता है । विशेष—हीँग का पौधा दो ढाई हाथ ऊँचा होता है और इसकी पत्तियों का समूह एक गोल राशि के रूप में होता है । इसकी कई जातियाँ होती हैं । कुछ के पौधे तो साल ही दो साल रहते हैं और कुछ की पेड़ी बहुत दिनों तक रहती है, जिसमें समय समय पर नई नई टहनियाँ और पत्तियाँ निकला करती हैं । पिछले प्रकार के पौधों की हीँग घटिया होती है और 'हीँगड़ा' कहलाती है । हींग के पौधे अफगानिस्तान, फारस के पूर्वी हिस्से (खुरासान, यज्द) तथा तुर्किस्तान के दक्षिणी भाग में बहुतायत से होते हैं । पर भारत में जो हीँग आती है, वह कंधारी हीँग (अफगानिस्तान की) है । हीँग का व्यवहार बघार के अतिरिक्त औषध में भी होता है । यह शूलनाशक, वायुनाशक, कफ निकालनेवाली, कुछ रेचक और उत्तेजक होती है । पेट के दर्द, वायगोला और हिस्टीरिया (मूर्छा रोग) में यह बहुत उपकारी होती है । आयुर्वेद में इसके योग से कई पाचक चूर्ण और गोलियाँ बनती हैं । हीँग में व्यापारी अनेक प्रकार की मिलावट करते हैं । शुद्ध खालिस हीँग 'तलाव हीँग' कहलाती है ।