आँच
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]आँच संज्ञा स्त्री [सं॰ अर्चि=आग की लपट, पा॰ अच्चि]
१. गरमी । ताप; जैसे,— (क) आग और दूर हटा दो, आँच लगती है । (ख) कोयले की आँच पर भोजन अच्छा पकता है । उ॰—धौरी धेनु दुहाइ छानि पय मधुर आँचि में औटि सिरायौ ।—सूर॰, १० ।१६०० । क्रि॰ प्र॰—आना ।— पहुँचना ।— लगना ।
२. आग की लपट । लौ; जैसे,—चूल्हे में और आँच कर दो, तवे तक तो आँच पहुँचती ही नहीं । क्रि॰ प्र॰—करना ।— फैलना ।— लगना ।
३. आग । अग्नी; जैसे—(क) आँच जला दो । (ख) जाऔ थोडी सी आँच लाओ । मुहा॰—आँच खाना । गरमी पाना । आग पर चढना । जैसे,— यह बरतन आँच खाते ही फूट जाएगा । आँच दिखाना=आग के सामने रखकर गरम करना; जैसे, —जरा आँच दिखा दो तो बरतन का सब घी निकल आवे ।
४. ताव । जैसे,—अभी इस रस में एक आँच की कसर है ।(ख) उसके पास सौआँच का अभ्रक है । मुहा॰—आँच खाना=ताव खाना । आवश्यकता से अधिक पकना । जैसे,—दूध आँच खा गया है, इससे कुछ कडुआ मालूम पडता है ।
५. तेज । प्रताप । जैसे,—तलवार की आँच ।
६. आघात । चोट ।
७. हानि । अहित । अनिष्ट । जैसे,—(क) तुम निंश्चिंत रहो, तुमपर किसी प्रकार की आँच न आवेगी ।— (ख) साँच को आँच क्या । उ॰—निहचिंत होइ के हरि भजै मन में राखै साँच । इ पाँचन को बस करै,ताहि न आवै आँच ।—कबीर (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—आता ।— पहुँचना ।
८. विपत्ति । संकट । आफत । संताप । जैसे,—इस आँच से नीकल आवें तो कहों । उ॰— आए नर चारि पाँच, जानी प्रभु आँच, गडि लीयो सो दिखायो आँच, चलै भक्त भाइ कै । —प्रिया॰( शब्द॰) ।
९. प्रेम । मुहब्बत । जैसे,—माता की आँच बड़ी होती है ।
१०. काम । ताप ।