कुश

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

कुश ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰] [स्त्री॰ कुशा, कुशी]

१. काँस की तरह की एक पवित्र और प्रसिद्ध घास । डाभ । दर्भ ।उ॰— कुश किसलय साथरी सुहाई । प्रभु संग मंजु मनोज तुराई ।— तुलसी (शब्द॰) । विशेष—इसकी पत्तियाँ नुकीली, तीखी और कड़ी होती हैं । प्राचीन काल में यज्ञों में इसका बहुत उपयोग होता था । इसकी रस्सियाँ ईंधन लपेटने, जुआ बाँधने आदि कामों में आती थीं । अब भी कुश पवित्र माना जाता है और कर्मकांड तथा तर्पण आदि में इसका उपयोग होता है । पर्या॰—कुथ । दर्भ । पवित्र । याज्ञिक । बर्हि । ह्रस्वगर्भ । कुतुप । शूच्यग्र ।

२. जल । पानी ।

३. एक राजा जो उपरिचर वसु का पुत्र था ।

४. रामचंद्र का एक पुत्र ।

५. पुराणानुसार सात द्वीपों में से एक द्वीप ।

६. बलाकाश्व का पुत्र ।

७. फाल । कुसिया । कुसी (हल की) ।

कुश ^२ वि॰

१. कुत्सित । नीच ।

२. उन्मत्त । पागल ।