केल

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

केल ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ कदल, प्रा॰ कयल] दे॰ 'केला' । उ॰— केल रहे नित काँपती कायर जणे कपूर ।— बाँकी ग्रं॰, भा॰

१. पृ॰ २४ ।

केल ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ केलिक, प्रा॰ केलिय] एक वृक्ष जो हिमालय पर ६००० से ११००० फुट की ऊँचाई तक होता है । विशेष— यह पेड़ सीधा और बहुत बड़ा होता है । इसकी लकड़ी प्रति घनफुट १७ सेर भारी होती है । इसके दो भेद होते हैं— देशी और बिलायती । दोनों की लकड़ी प्रायः इमारत के काम में आती है । देशी केल की लकड़ी में से चीड़ के तेल की तरह तेल निकलता है और उसका कोयला भी अच्छा होता है जिससे लोहा पिघल जाता है । विलायती केल की लकड़ी जलाने के काम में नहीं आती वह जलाने से चिड़चिड़ाती और जल्दी बुझ जाती है । दोनों की छाल दृढ़ होती है और छत पाटने के काम में आती है । केल की पत्तियाँ और ड़ालियाँ विलाची के काम में लाई जाती है । विलायती केल के पेड़ देखने में सीधे और सुंदर होते है; इसलिये सड़कों पर और मैदानों में लगाए जाते है ।