कोदो

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

कोदो संज्ञा पुं॰[सं॰ कोद्रव] एक प्रकार का कदन्न जो प्राय:सारे भारतबर्ष में होता है । कोदरा । कोदई । विशेष—इसका पौधा धान या बडी़ घास के आकार का होता है । इसकी फसल पहली बर्षा होते ही बो दी जाती है और भादों में तैयार हो जाती है । इसके लिये बढि़या भूमि या अधिक परिश्रम की आवस्यकता नहीं होती । कहीं कहीं यह रूई या अरहर के खेत में भी बो दिया जाता है । अधिक पकने पर इसके दाने झडकर खेत में गिर जाते हैं, इसलिये इसे पकने से कुछ पहले ही चकाटकर खलिहान में डाल देते हैं । छिलका उतरने पर इसके अंदर से एएक प्रकार के गोल चावल निकलते हैं जो खाए जाती हैं । कभी कभी इसके खेत में अगिया नाम की घास उत्पन्न हो जाती है जो इसके पौधों को जला देती है । यदि इसकी कटाई से कुछ पहले बदली हो जाय, तो इसके चावलों में एक प्रकार का विष आ जाता है । वैद्यक के मत से यह मधुर, तिक्त, रूखा, कफ और पित्तानाशक होता है । नया कोदो कुरु पाक होता है । फोडे़ के रोगी को इसका पथ्य दिया जाता है । मुहा॰—कोदो देकर पढ़ना या सीखना = अधूरी या बोढंगी शिक्षा । पाना । कोदो दलना = निकृष्ट पर अधीक परिश्रम का काम करना । छाती पर कोदो दलना = किसी को दिखलाकर कोई ऐसा काम करना जिससे उसे ईर्ष्या और ताप हो । किसी को जलाने या कुढा़ने के लिये उसे दिखलाकर या उसकी जानकारी में कोई काम करना ।

कोदो पु संज्ञा पुं॰ [सं॰ कौद्रव] दै॰ 'कोदो' । उ॰— फटै नाक न टूटै काधन कोदो गों भुल खैहै । — कबीर ग्रं॰, पृ॰ २८५ ।