खुमारी

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

खुमारी संज्ञा स्त्री॰ [अ॰ खुमार]

१. मद । नशा । उ॰—जब जान्यो ब्रजदेव सुरारी । उतर गई तब गर्ब खुमारी ।—सूर (शब्द॰) ।

२. वह दशा जो नशा उतरने के समय होती है और जिसमें कुछ हल्की थकावट मालूम होती है । उ॰— ध्रुव प्रहलाद विभीषण माते, माती शिव की नारी । सुगुण ब्रह्म माते बृंदाबन, अजँहु न छूटि खुमारी । —कबीर (शब्द॰) ।

३. वह दशा जो रात भर जागने से होती है । इसमें भी शरीर शिथिल रहता है । क्रि॰ प्र॰—उतरना ।—चढ़ना ।