चकवा

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

चकवा ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ चक्रवाक] [स्त्री॰ चकई] एक पक्षी जो जाड़े में नदियों और बड़े जलाशयों के किनारे दिखाई देता है और बैसाख तक रहता है । उ॰—चकवा चकई दो जने, इन मत मारो कोय । ये मारे करतार के, रैन बिछोहा होय (शब्द॰) । विशेष—अधिक गरमी पड़ते ही यह भारतवर्ष से चला जाता है । यह दक्षिण को छोड़ और सारे भारतवर्ष में पाया जाता है । यह पक्षी प्रायः झुंड में रहता है । यह हंस की जाति का पक्षी है । इसकी लंबाई हाथ भर तक होती है । इसके शरीर पर कई भिन्न भिन्न रंगों का मेल दिखाई देता है । पीठ और छाती का रंग पीला तथा पीछे की ओर का खैरा होता है । किसी के बीच बीच में काली और लाल धारियाँ भी होती हैं । पूँछ का रंग कुछ हरापन लिए होता है । कहीं कहीं इन रंगों में भेद होता है । डैनों पर कई रंगों का गहरा मेल दिखाई देता है । यह अपने जोड़े से बहुत प्रेम रखता है । बहुत काल से इस देश में ऐसा प्रसिद्ध है कि रात्रि के समय यह अपने जोड़े से अलग रहता है । कवियों ने इसके रात्रिकाल के इस वियोग पर अनेक उक्तियाँ बाँधी है । इस पक्षी को सुरखाब भी कहते हैं ।

चकवा ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ चक्र]

१. हाथ से कुछ बढ़ाई हुई आटे की लोई ।

२. जुलाहों की चरखी तथा नटाई में लगी हुई बाँस की छड़ी ।

चकवा ^३ संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक बहुत ऊँचा पेड़ जो मध्य प्रदेश, दक्षिण भारत तथा चटगाँव की ओर बहुत मिलता है । विशेष—इसके हीर की लकड़ी बहुत मजबुत और छाल कुछ स्याही लिए सफेद या भूरी होती है । इसके पत्ते चमड़ा सिझाने के काम में आते हैं ।