टघरना
हिन्दी[सम्पादन]
प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]
शब्दसागर[सम्पादन]
टघरना † क्रि॰ अ॰ [सं॰ तप ( = गरम करना) + गरण (= पिघलना)]
१. घी, चरबी, मोम आदि का आँच खाकर द्रव होना । पिघलना । संयो॰ क्रि॰—जाना ।
२. ह्रदय का द्रवीभूत होना । चित में दया आदि उत्पन्न होना । हृदय पर किसी की प्रार्थना या कष्ट आदि का प्रभाव पड़ना । संयो॰ क्रि॰—जाना ।