त्रेता

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

त्रेता संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. चार युगों में से दूसरा युग जो १२९६०० वर्ष का होता है । विशेष—पुराणानुसार इस युग का जन्म अथवा आरंभ कार्तिक शुक्ला नवमी को होता है । इस युग में पुराण के तीन पाद और पाप का एक पाद होता है और सब लोग धर्मपरायण होते हैं । पृराणानुसार इस युग में मनुष्यों की आयु दस हजार वर्ष तथा मनु के अनुसार तीन सौ वर्ष होती है । परशुराम और रघुवंशी राम के अवतार का इसी युग में होना माना जाता है । मुहा॰—त्रेता के बीजों में मिलना = सत्यानाश होना । नष्ट होना । (एक शाप) ।

२. दक्षिण, गर्हपत्य और आहवनीय, ये तीनों प्रकार की अग्नियाँ ।

३. जुए में तीन कोड़ियों का अथवा पासे के उस भाग का चित पड़ना जिसपर तीन बिंदियाँ हों ।