त्वक्

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

त्वक् संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. छिलका । छाल ।

२. त्वचा । चमड़ा । खाल । उ॰— कोमलता त्वक् जानत है पुनि, बोलत है मुख सबद उचारो ।— संतवाणी॰, पृ १११ ।

३. पाँच ज्ञानेद्रियों में से एक जो सारे शरीर के ऊपरी भाग में व्याप्त है । विशेष— इसके द्बारा स्पर्श होता है तथा कड़े और नरम, ठंढे और गरम आदि का ज्ञान प्राप्त किया जात है । हमारे यहाँ प्राचीन ऋषियों ने इसे वायु के सत्वाश से उत्पन्न माना है और इसका देवता वायु बतलाया है ।

४. दारचीनी ।