दशनामी

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

दशनामी संज्ञा पुं॰ [हिं॰ दश + नाम] संन्यासियों का एक वर्ग जो अद्वैतवादी शंकराचार्य के शिष्यों से चला है । विशेष—शंकराचार्य के चार प्रधान शिष्य थे—पद्यपाद, हस्ता- मलक, मंडन और तोटक । इनमें से पदमपाद के दो शिष्य थे—तीर्थ और आश्रम; हस्तामलक के दो शिष्य—वन और अरण्य, मंडन के तीन शिष्य—गिरि, पर्वत और सागर । इसी प्रकार तोटक के तीन शिष्य—सरस्वती, भारती और पुरी । इन्हीं दस शिष्यों के नाम से संन्यासियों के दस भेद चले । शंकराचार्यने चार मठ स्थापित किए थे, जिनमें इन दस प्रशिध्यों की शिष्यपरंपरा चली जाती है । पुरी, भारती और सरस्वती की शिष्य परंपरा श्रृंगेरी मठ के अंतर्गत है; तीर्थ और आश्रम शारदा मठ के अंतर्गत, वन और अरण्य गोवर्धन मठ के अंतर्गत तथा गिरि, पर्वत और सागर जोशी सठ के अंतर्गत हैं । प्रत्येक दशनामी संन्यासी इन्हीं चार मठों में से किसी न किसी के अंतर्गत होता है । यद्यपि दशनामी ब्रह्म या निर्गुण उपासक प्रसिद्ध हैं, तथापि इनमें से बहुतेरे शैवमंत्र की दीक्षा लेते हैं ।