बहेड़ा

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

बहेड़ा संज्ञा पुं॰ [सं॰ बिभीतक, प्रा॰ बहेडअ] एक बड़ा और ऊँचा जंगली पेड़ जो अर्जुन की जाति का माना गया है । विशेष—यह पतझड़ में पते झाड़ता है और सिंध तथा राज- पूताने आदि सूखे स्थानों को छोड़कर भारत के जंगलों में सर्वत्र होता है । बरमा और सिंहल में भी यह पाया जाता है । इसके पत्ते महुए के से होते हैं । फूल बहुत छोटे छोटे होते हैं जिनके झड़ने पर बड़ी बेर के इतने बड़े फल गुच्छों में लगते हैं । इनमें कसाव बहुत कम होता है, इससे ये चमड़ा सिझाने और रँगाई के काम में आते हैं । ताजे फलों को भेड़ बकरी खाती भी हैं । वैद्यक में बहेड़े का बहुत व्यवहार है । प्रसिद्ध औषध त्रिफला में हड़, बहेड़ा और आँवला ये तीन वस्तुएँ होती हैं । वैद्यक में बहेड़ा स्वादपाकी, कसेला, कफ-पित्त-नाशक, उष्णवीर्य, शीतल, भेदक, कास- नाशक, रूखा, नेत्रों को हितकारी, केशों को सुंदर करनेवाला तथा कूमि और स्वरभंग को नष्ट करनेवाला माना गया है । बहेड़े के पेड़ से एक प्रकार का गोंद भी निकलता है जो पानी में नहीं घुलता । लकड़ी इसकी अच्छी नहीं होती पर तख्ते, हलके संदूक, हल या गाड़ी बनाने के काम में आती है । पर्या॰—बिभीतक । कलिद्रुम । कल्पवृक्ष । संवतं । अक्ष । तुप । कर्पफल । भूतवास । कुशिक । बहुवीर्य । तैलफल । वासंत । हार्य । विपध्न । कलिंद । कासध्न । तोलफल । तिलपुष्पक ।