बार

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

बार ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ वार]

१. द्वार । दरवाजा । उ॰—(क) अकिल बिहूना आदमी जानैं नहीं गँवार । जैसे कपि परबस परयो नाचै घर घर बार ।—कबीर (शब्द॰) । (ख) सुवर सेन चहुआन सिंग जबुदून नवाई । जनु मदिर बिय बार ढंकि इक बार बनाई ।—पृ॰ रा॰, ३५ । ४७४ । (ग) गोपिन के अँसुवन भरी सदा असोस अपार । डगर डगर ने ह्वै रही बगर बगर भरी के बार ।—बिहारी (शब्द॰) । यौ॰— दरबार ।

२. आश्रयस्थान । ठिकाना । उ॰— रहा समाइ रूप वह नाऊँ । और न मिलै बार जहँ जाऊँ ।—जायसी (शब्द॰) ।

३. दरबार ।

बार ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ वार]

१. काल । समय । उ॰— (क) कबिरा पूजा साहु की तू जनि करै खुआर । खरी । बिगूचनि होयगी लेखा देती बार ।—कबीर (शब्द॰) । (ख) सिर लंगूर लपेटि पछारा । निज तन प्रगटेसि मरती बारा ।— तुलसी (शब्द॰) । (ग) इक भीजे चहले परे बूड़ै बहे हजार । कितने औगुन जग करत नय बय चढ़ती बार ।—बिहारी (शब्द॰) ।

२. अतिकाल । देर । विलंब । बेर । उ॰—(क) निधड़क बैठा राम बिनु चेतन करों पुकार । यह तन जल का बुदबुदा बिनसत नाहीं बार ।— कबीर (शब्द॰) । (ख) देखि रूप मुनि बिरति बिसारी । बड़ी बार लगि रहे निहारी ।— तुलसी (शब्द॰) । (ग) अबही और की और हीत कछु लागे बारा । तातें में पाती लिखी तुम प्रान आधारा ।—सूर (शब्द॰) ।

बार ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ वाट(=घेरा या किनारा हिं बाड़)]

१. घेरा या रोक जो किसी स्थान के चारों ओर हो । जेसै, बाँध, टट्टी आदि । दे॰ 'बाड़', 'बाढ़' ।

२. किनारा । छोर । बारी ।

३. धार । बाढ़ । उ॰—एक नारि वह है बहुरगी । घर से बाहर निकसे नंगी । उस नारी का यहा सिंगार । सिर पर नथनी मुँह पर बार ।— रहीम (शब्द॰) ।

४. नाव, थाली, आदि की अवँठ । किनारा ।

५. बाँगर । उँची पक्की जमीन जिसे नदियों ने न बनाया हो । उ॰— मनुष्यों के विभिन्न झुंड़ों की तीन तरह की विभिन्न परिस्थितियाँ थीं—समुद्र तट, सघन वन और सूखे बागर या बार ।—भारत नि॰, पृ॰ ४ ।

बार ^४ संज्ञा पुं॰ [हि॰] दे॰ 'बाला' । केश । उ॰— भ्रूपर अनूप मसि बिंदु बारे बार बिलसत सीस पर हेरि हरै हियो है ।—तुलसी ग्रं॰, पृ॰ २७३ ।

बार ^५ संज्ञा पुं॰ [फा॰ मि॰ सं॰ भार]

१. बोझा । भार । उ॰— जेहि जल तृण पशु बार बूड़ि अपने सँग बोरत । तेहि जल गाजत महावीर सब तरत अँग नहिं डोलत ।— सूर (शब्द॰) । यौ॰—बारबरदार । बारबरदारी । बारदाना । मुहा॰—बार करना=जहाज पर से बोझ उतारना । (जहाजी) ।

२. वह माल जो नाव पर लाजा जाय । (लश॰) ।

३. ऋण का बोझ ।

४. वृक्ष की शाखा या टहनी (को॰) ।

५. फल (को॰) ।

६. इजलास । दरबार । सभा (को॰) ।

७. गर्भ । भ्रूण (को॰) ।

८. गुजर । पहुँच । प्रवेश । रसाई । पैठ । उ॰— देस देस के राजा आवहिं । ठाढ़ तँवाहि बार नहिं पाबहिं ।— चित्रा॰, पृ॰ ६० ।

बार ^६ प्रत्य॰ [फा॰] बरसनेवाला । विशेष— संज्ञा पदों में प्रयुक्त होकर यह प्रत्यय उक्त अर्थ देता है जैसे,— गोहरबार, दरियाबार आदि ।

बार ^७ वि॰ [हिं॰] दे॰ 'बाल' और 'बाला' ।

बार † ^८ संज्ञा पुं॰ [सं॰ वारि] जल ।

बार ^९ संज्ञा पुं॰ [सं॰] छिद्र । छेद । दरार । बिल [को॰] ।

बार ^१० संज्ञा पुं॰ [फा॰ बह् ह् (=अंश) या बह्(=छंद)] अंश । भाग । हिस्सा । उ॰— मेच्छ मसूरति सत्ति कै बंच कुरानी बार ।— पृ॰ रा॰, २६ ।

बार ^११ संज्ञा पुं॰ [फा॰ वार] वार । आक्रमण । हमला । उ॰— पसुन प्रहार बहु । कष्ठ तैं बचाय राख्यो बालपन बीच तोको सूलन की बार मै ।— मोहन॰, पृ॰ १३४ ।

बार ^१२ क्रि॰ वि॰ [सं॰ वहि; वाह्य] दे॰ 'बाहर' । उ॰— मगर हैं आमिना के सात बेजार, उसे आने कते देना नहीं बार ।— दक्खिनी॰, पृ॰ १६३ ।

बार ^१३ संज्ञा पुं॰ [अं॰]

१. वकीलो, बैरिस्टरों का समूह, उनका पेशा और कचहरी में उनके उठने बैठने, आराम करने का स्थान ।

२. वह स्थान जहाँ नृत्य होता हो । नाचघर ।

३. शराब- खाना । मदिरालय । यौ॰— बार असोसिएशन=वकीलों का संघ । बार ऐट लाँ= बैरिस्टर । बार रूम=कटहरी में वकीलो के उठने बैठने का कमरा । बार लाइब्रेरी=कचहरी में वरीलों वैरिस्टरों का पुस्तकालय ।

बार आवर [फा॰] फलयुक्त । फलदार । फलनेवाला [को॰] ।