बैर

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बैर

हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

बैर ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ वैर]

१. किसी के साथ ऐसा संबंध जिससेhhhj🎉🌲❤️😭🌲🎈❤️👸🤴💂🏫💂🏫💂🏰👩‍🌾🙏👩‍🌾🙏🙏💂🌲👸🤴🏫👩‍🌾🙏💂👸🏫👩‍🌾💂🌲🤴🏰👩‍🌾💂🌲🏫👩‍🌾👩‍🔬🙏🏫👩‍🌾👩‍🔬🙏🌲🏫👩‍🌾👩‍🔬🙏🌲🤴🏰👩‍🌾🙏🌲🏫👩‍🌾👩‍🌾💂🌲🏫👩‍🌾👩‍🌾

उसे हानि पहुँचाने की प्रवृत्ति हो और उससे हानि पहुँचने का डर हो । अनिष्ट संबंध । शत्रुता । विरोध । अदावत । दुश्मनी । जैसे,—उन दोनों कुलो में पीढ़ियों का बैर चला आता था । 

२. किसी के प्रति अहित कामना उत्पन्न करनेवाला भाव । प्रीति का बिल्कुल उलटा । वेमनस्य । दुर्भाव । द्रोह । द्वेष । उ॰—वैर प्रीति नहिं दुरत दुराए ।—तुलसी (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—रखना । मुहा॰—बैर काढ़ना या निकालना = दुर्भाव द्वारा प्रेरित कार्य कर पाना । बदला लेना । उ॰—यहि बिधि सब नवीन पायो ब्रज काढ़त बैर दुरासी ।—सूर (शब्द॰) । बैर ठानना = शत्रुता का संबंध स्थिर करना । दुश्मनी मान लेना दुर्भाव रखना आरंभ करना । उ॰—सिर करि धाय कंचुकी भारी अब तो मेरो नाँव भयो । कालि नहीं यहि मारग ऐसे ऐसे मोंसों बैर ठयो ।—सूर (शब्द॰) । बैर डालना = विरोध उत्पन्न करना । दुश्मनी पैदा करना । बैर पडना = बाधक होना । तंग करना । शत्रु होकर कष्ठ पहुँचाना । उ॰— कुटुँब बैर मेरे बरनि बरे सिसुपाल ।—सूर (शब्द॰) । बैर बढा़ना = अधिक दुर्भाव उत्पन्न करना । दुश्मनी बढा़ना । ऐसा काम करना जिससे अप्रसन्न या कुपित मनुष्य और भी अप्रसन्न और कुपित होता जाय । उ॰—आवत जात रहत याही पथ मोसों बैर बढै़ही ।—सूर (शब्द॰) । बैर बिसाहना था मोल लेना = जिसे बात से अपना कोई संबंध न हो उसमें योग देकर दूसरे को अपना विरोधी या सत्रु बनाना । बिना मतलब किसी से दुश्मनी पैदा करना । उ॰—चाह्यो भयो न कछु कबहूँ जमराजहु सो बृथा बैर बिसाह्यो ।—पद्माकर (शब्द॰) । बैर मानना = दुर्भाव रखना । बुरा मानना । दुश्मनी रखना । बैर लेना = बदला लेना । कसर निकालना । उ॰—(क) लेत केहरि को बयर जनु भेक हति गोमाय ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) लेहों वैर पिता तेरे को, जैहै कहाँ पराई ?—सूर (शब्द॰) ।

बैर ^२ संज्ञा पुं॰ [देश॰] हल में लगा हुआ चिलम के आकार का चोंगा जिसमें भरा हुआ बीज हल चलने में बराबर कूँड़ में पड़ता जाता है ।

बैर † ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ बदर, प्रा॰ बयर] बैर का फल और पेड़ ।