मेख

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

मेख ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ मेष] दे॰ 'मेष' ।

मेख ^२ संज्ञा स्त्री॰ [फा़॰ मेख] जमीन में गाड़ने के लिये एक ओर नुकीली गढ़ी हुई लकड़ी । खुँटा । खुँटी । उ॰—उन्हें यों हतज्ञान सा देख, ठोंकती सी छाती पर मेख ।—साकेत॰, पृ॰ ४८ ।

२. कील । कँटिया । क्रि॰ प्र॰—उखाड़ना ।—गाड़ना ।—ठोंकना ।—मारना । मुहा॰—मेख ठोंकना =(१) हाथ पैर में कील ठोंककर कहीं स्थिर कर देना । बहुत कठोर दंड देना । (इस प्रकार का दंड पहले प्रचलित था) । (२) हराना । दबाना ।जेर करना । तोप के मुँह में मेख ठोंकना =तोप का मुँह बंद करके उसे निकम्मा कर देना । मेख मारना =(१) कील ठोंककर चलना या हिलना बंद कर देना । (२) कोई ऐसी बात बोल देना जिससे किसी का होता हुआ काम न हो । भाँजी मारना । (३) चलते हुए काम में रुकावट डालना ।

२. कील । काँटा ।

३. लकड़ी की फट्टी जो किसी छेद में बैठाई हुई वस्तु को ढीली होने से रोकने के लिये इधर उधर पेसी जाय । पच्चड़ ।

४. घोड़े का लँगड़ापन जो नाल जड़ते समय किसी कील के ऊपर ठुक जाने से होता है ।