मोहरा

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

मोहरा ^१ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ मुँह + रा (प्रत्य॰)] [स्त्री॰ मोहरी]

१. किसी बर्तन का मुँह या खुला भाग ।

२. किसी पदार्थ का ऊपरी या अगला भाग ।

३. एक प्रकार की जाली जो बैल, गाय, भैंस इत्यादि का मुँह कसकर गिराँव के साथ बाँधने के लिये होती है । यह मुँह पर बाँधकर कस दी जाती है, जिससे पशु खाने पीने की चीजों पर मुँह नहीं चला सकता ।

४. सेना की अगली पंक्ति जो आक्रमण करने और शत्रु को हटाने के लिये तैयार हो ।

५. फौज की चढ़ाई का रुख । सेना की गति । उ॰—मही के महीपन को मोरयौ कैसे मोहरा ।—रघुराज (शब्द॰) । मुहा॰—मोहरा लेना =(१) सेना का मुकाबला करना । (२) भिड़ जाना । प्रतिद्वंद्विता करना ।

६. कोई छेद वा द्धार जिससे कोई वस्तु बाहर निकले ।

७. चोली आदि की तनी या बंद । उ॰—कंचुकी सूही कसे मोहरा अति फैलि चली तिगुनी परभासी । मानिक के भुजवंद चुरी माठी कैचन कंकन ओप प्रकासी ।—गुमान (शब्द॰) ।

मोहरा ^२ संज्ञा पुं॰ [फा़॰ मोहर]

१. शतरंज की कोई गोटी ।

२. मिट्टी का साँचा जिसमें कड़ा, पछुआ इत्यादि ढालते हैं ।

३. रेशमी वस्त्र घोटने का घोटना जो प्रायः बिल्लौर का बनता है ।

४. सिंगिया विष ।

५. सोने, चाँदी पर नक्काशी करनेवालों का वह औजार जिससे रगड़कर नक्काशी को चमकाते हैं । दुआली ।

६. जहरमोहरा । उ॰—बड़े भाग सरे सतगुरु मिलिगे घोरि पियाए जस मोहरा । कहै कदीर सुनो भाइ साधो गया साघ नहिं बहुरा ।—कबीर श॰, भा॰ ३, पृ॰ ४८ ।