वल

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

वल सों करिहै ग्रास कह— । (नेपथ्य में) हैं मेरे जीते चंद्र को कौन वल से ग्रास कर सकता ? सूत्र॰—जेहि बुध रच्छत 'आप' । भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ १, पृ॰ १३८ । यहाँ सूत्रधार ने तो ग्रहण का विषय कहा था किंतु चाणक्य ने 'चंद्र' शब्द का अर्थ चंद्रगुप्त प्रकट करने प्रवेश करना चाहा, इसी से उद्घघातक प्रस्तालना हुई ।

वल संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. मेघ ।

२. एक असुर का नाम । विशेष—यह देवताओं की गौएँ चुराकर एक गुहा में जा छिपा था । इंद्र उस गुहा को छेंककर उसमें से गौओं को छुड़ा लाए थे । फिर वल ने बैल का रूप धारण किया और वह बृहस्पति के हाथ से मारा गया । दे॰ 'बल' ।