विभाव

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

विभाव संज्ञा पुं॰ [सं॰] साहित्य में वह वस्तु जो रति आदि स्थायी भावों को आलंबन में उत्पन्न करनेवाली या उदीप्त करनेवाली हो । रसविधान में भाव का आलंबन या विभावक या उद्दीपक । उ॰—इसी भाव (प्रेम) के विविध प्रकार के आलंबनों और उद्दीपनों का चित्रण इस भूमि के विभाम पक्ष में पाया जाता है ।—रस॰, पृ॰ ७४ । विशेष—विभाव दो कहे गए हैं—आलंबन और उद्दीपन । आलंबन वह है जिसके प्रति आश्रय या पात्र के हृदय में कोई भाव स्थित हो । जैसे नायक के लिये नायिका और नायिका के लिये नायक । उद्दीपन वह है जिससे आलंबन के प्रति स्थित भाव उद्दीप्त या उत्तेजित हो । रसभेद से आलंबन और उद्दीपन बिन्न भिन्न होंगे । जैसे, श्रृंगार में आलंबन होगे नायक नायिका; हास में कोई बढंगी आकृति या वाणी आदि वाला व्यक्ति; करुण में विनष्ट बंधु आदि या कोई पीड़ित अथवा शोचनीय व्यक्ति इत्यादि, इत्यादि । इसी प्रकार उद्दीपन भी रसभेद से भिन्न होगे । जैसे, श्रृंगार में चाँदनी, फूल आदि; रौद्र में आलबन की दुष्ट चेष्टा इत्यादि ।

२. मित्र । परिचित व्यक्ति (को॰) ।

३. कोई भी उत्तेजक दशा, अवस्था या स्थिति जिससे भावों का उद्दीपन हो (को॰) ।

४. शिव का एक नाम (को॰) ।