विशेषोक्ति

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

विशेषोक्ति संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] काव्य में एक प्रकार का अलंकार जिसमें पूर्ण कारण के रहते हुए भी कार्य के न होने का वर्णन रहता है । जैसे,—(क) अलि इन लोयन की कछू उपजी बड़ी बलाय । नीर भरे नित प्रति रहैं, तऊ न प्यास बुझाय । (ख) तमकि ताकि तकि शिव धनु धरहीं । उठत न कोटि भाँति बल करहीं—तुलसी (शब्द॰) ।