शब्द

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हिन्दी

संज्ञा

शब्द

  1. एक से अधिक अक्षर को मिला ने पर एक शब्द बनता है। शब्द कई प्रकार के होते हैं। कुछ में प्रत्यय लगा कर नए रूप और थोड़े अलग अर्थ दे सकते हैं।

उदाहरण

च + ल = चल ( चल एक प्रकार की क्रिया है। ) चल + ना = चलना ( यहाँ यह क्रिया को बता रहा है। )

अनुवाद

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

शब्द की गति ध्रुव प्रदेश में बहुत तेज होती है, मीला पर होनेवाला शब्द ऐसा जान पड़ता है कि पास ही हुआ है । इस भूभाग में सबसे मनोहर मेरुज्योति है जो चित्र विचित्र और नाना वणों के आलोक के रूप में कुछ काल तक दिखाई देती है ।

१९. फलित ज्योतिष में एक नक्षत्रगण जिसमें उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तर भाद्रपद और रोहीणी है ।

२०. रगण का अठारहवाँ भेद जिसमें पहले एक लघु, फिर एक गुरु और फिर तीन लघु होते हैं ।

२१. तालू का एक रोग जिसमें ललाई और सूजन आ जाती हैं ।

२२. सोमरस का वह भाग जो प्रातःकाल से सायंकाल तक बिना किसी देवता को अर्पित हुए रखा रहें ।

शब्द संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. वायु में होनेवाला वह कंप जो किसी पदार्थ पर आघात पड़ने के कारण अथवा स्वयं वायु पर आघात पड़ने के कारण उत्पन्न होकर कान या श्रवणेंद्रिय तक पहुँचता औऱ उसमें एक विशेष प्रकार का क्षोभ उत्पन्न करता है । ध्वनि । आवाज । विशेष—प्रायः सभी पदार्थों से, उनपर आघात आदि करके या उनमें जल्दी जल्दी गति उत्पन्न करके, शब्द उत्पन्न किया जा सकता है । उदाहरणार्थ, मृदंग, ढोलस, घंटा, कुरसी, किवाड़, कलम, थाली, जूता, हथौड़ा आदि । जब किसी पदार्थ पर दूसरा कोई पदार्थ आकर गिरता है अथवा किसी पदार्थ में बार- बार गति उत्पन्न की जाती है, तब वायु में एक प्रकार की ठेस लगती है जो सब और कुछ दूर तक जाती है; और जहाँ कान या श्रवणेंद्रिय होती है, वहाँ वह उसे ग्रहण करके मस्किष्क को उसकी सूचना देती है । वायु तो शब्द का वहन करता ही है, पर इसके अतिरिक्त और अनेक प्रकार की गैंर्सें, जल तथा अनेक लचीले ठओस पदार्थ भी शब्द वहन करते हैं । पर इनमें से मुख्य वाहक वायु ही है । तो भी वायु की अपेक्षा जल में शब्द बहुत अधिक दूर तक जाता है । जिस स्थान में वायु बिलकुल नहीं होती, वहाँ शब्द का वहन भी किसी प्रकार नहीं हो सकता । वायु की अपेक्षा जल में शब्द की गति और भी अधिक होती है । शब्द धीमा या हलका भी होता है, और भारी या तेज भी । यदि वायु में कंप बहुत अधिक होता है तो शब्द भी तेज या ऊँचा होता है । यदि वायु या शब्द के वाहक दूसरे साधन का घनत्व कम हो, तो भी शब्द हलका या धीमा हो जाता है । इसके अतिरिक्त दूरी भी शब्द को हलका या धीमा कर देती है । प्रकाश की भाँति शब्द का भी परिवर्तन होता है । अर्थात् शब्द एक स्थान से उत्पन्न होकर किसी ओर जाता है, और मार्ग में अवरोध पाकर फिर पीछे की ओर लौट आता है । पहाड़ के नीचे या गुबदों आदि में बोलने के समय शब्द की जो गुँज या प्रतिध्वनि होती है, वह इसी परावर्तन के कारण होती है । यदि वातावरण का तापमान

६२. हो तो शब्द की गति प्रति सेकँड ११२५ फुंट या प्रति मिनट प्रायः १२ मील होती है । यदि प्रायः एक ही तरह के बहुत से शब्द लगातार रह रहकर हों, तो उनसे 'शोर' पैदा होता है । शब्द के दो मुख्य भेद होते हैं—वर्णात्मक और ध्वन्यात्मक । ध्वन्यात्मक शब्द वह है जो कंठ और तालु आदि की सहायता से उत्पन्न होता है । इसको भी दो भेद हैं— व्यक्ति और अव्यक्त । जो शब्द सुनने में स्पष्ट हो और जिसका कोई अर्थ हो वह व्यक्त सहलता हैस, (दे॰ 'शब्द'—२) और जो स्पष्ट सुनाई न दे और जिसका कोई अर्थ न हो, वह अव्यक्त कहलाता है । जैसे, हाँ , ऊँ, खों । वर्णात्मक शब्द के अतिरिक्त और जितने प्रकार के शब्द होते हैं, वे ध्वन्यात्मक कहलाते हैं । जैसे, मृदंग या घंटे आदि से अथवा जोर से हवा चलने के कारण उत्पन्न होनेवाला शब्द । 'मीमांसाकार' ने शब्द को नित्य और सांख्यकार ने उसे आकाश का गुण माना है । न्याय आदि ने शब्द को आकाश का गुण माना है । भारतीय वैयाकरणों ने उसे द्रव्य माना है । व्याकरण दर्शन में शब्द को नित्य, कूटस्थ—यहाँ तक कि शब्दब्रह्म भी कहा है जो स्फोटात्मक है । विशेष दे॰ 'ध्वनि' । पर्या॰—निनाद । रव । राव । निर्घोष । नाद । घोष । निनद । ध्वनि । ध्वान । स्वन । स्वान । निर्हाद । आरव । आराव । निःस्वन । निःस्वान । संरव । संराव । विराव ।

२. वह स्वतंत्र, व्यक्त और सार्थक ध्वनि जो एक या अधिक वर्णों के संयोग से, कंठ और तालु आदि के द्वारा, उत्पन्न हो और जिससे सुननेवाले को किसी पदार्थ, कार्य या भाव आदि का बोध हो । लफ्ज । जैसे, मैं, क्य, सोना, घोड़ा, मोटाई, काला आदि ।

३. अमृतोपनिषद् के अनुसार 'ओम्' जो परमात्मा का मुख्य नाम है ।

४. किसी साधु या महात्मा के बनाए हुए पद या गीत आदि । जैसे, गुरु नानक के शब्द, कबीर के शब्द ।

५. नाम । संज्ञा (को॰) ।

६. व्याकरण (को॰) ।

७. ख्यात । मशहूर (को॰) ।

८. केवल नाम । शुद्ध नाम । जैसे, शब्दपति में (को॰) ।

शब्द अतीत संज्ञा पुं॰ [सं॰ शब्दातीत] जिसका वर्णन शब्दों के द्वारा न हो सके । शब्दातीत । उ॰—शब्द अतीत शब्द सा अपना बूझै बिरला कोई ।—कबीर श॰, भा॰ १, पृ॰ ५४ ।