त्रिपत वि॰ [हिं॰] दे॰ 'तृप्त' । उ॰—बरंगाँ राल बरमाल सूरा वरैं । त्रिपत पंखाल पिल खुल ताला ।—रघु॰ रू॰, पृ॰ २० ।