सुनसान
हिन्दी[सम्पादन]
प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]
शब्दसागर[सम्पादन]
सुनसान ^१ वि॰ [सं॰ शून्य+स्थान]
१. जहाँ कोई न हो । खाली । निर्जन । जनहीन । उ॰—(क) ये तेरे वनपंथ परे सुनसा न उजारू ।—श्रीधर पाठक (शब्द॰) । (ख) स्वामी हुए बिना सेवक के नगर मनुष्यों बिन सुनसान ।—श्रीधर पाठक (शब्द॰) । (ग) सुनसान कहुँ गंभीर बन कहुँ सोर वन पशु करत हैं ।—उत्तररामचरित्र (शब्द॰) ।
२. उजाड़ । वीरान ।