गुलाम

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

गुलाम संज्ञा पुं॰ [अ॰ ग़ुलाम]

१. मोल लिया हुआ दास । खरीदा हुआ नौकर । मुहा॰—(मनुष्य आदि को) गुलाम करना या बनाना = अपने वश में करना । पूरी तरह से अधिकार में करना । गुलाम का तिलाम = बहुत ही तुच्छ सेवक । सेवक का सेवक । यौ॰—गुलाम गर्दिश । गुलाम माल । विशेष—कभी कभी बोलनेवाला (उत्तम पुरुष) भी नम्रता प्रकट करने के लिये इस शब्द का प्रयोग करता है । जैसे,— गुलाम (मैं) हाजिर है, क्या आज्ञा है ।

२. साधारण सेवक । नौकर ।

३. गंजीफे का एक रंग ।

४. ताशा में दहले से बड़ा और बेगम से छोटा एक पत्ता । इसपर दास के रूप में एक आदमी का चित्र बना रहता है ।

गुलाम गर्दिश संज्ञा स्त्री॰ [अ॰ गुलाम + फा॰ गर्दिश]

१. वह छोटी दीवार जो जनानखाने में अंदर की ओर सदर दरवाजे के ठीक सामने अथवा जनानखाने और दीवानखाने के बीच में परदे के लिये बनी हो । विशेष-इस दीवार के रहने से स्त्रियाँ आँगन में घूम फिर सकती हैं और बाहर के लोगों की दृष्टि उनपर नहीं पड़ सकती ।

२. कोठी या महल आदि के चारों ओर बना हुआ वह बरामदा जहाँ अरदली, चपरासी, दरवान और दूसरे नौकर चाकर रहते हों ।

गुलाम चोर संज्ञा पुं॰ [अ॰ गुलाम + हिं॰ चोर] ताश का एक प्रकार का खेल जो दो से सात आठ आदमियों तक में खेला जाता हैं । विशेष—इसमें एक गुलाम या ओर कोई पत्ता गड्डी से अलग से दिया जाता है; और तब सब खेलनेवालों में बराबर बराबर पत्ते बाँट दिए जाते हैं । हर एक खिलाड़ी अपने अपने पत्तों के जोड़ (जैसे,—दुक्की दु्ककी, छ्क्का छक्का, दहला दहला) निकालकर अलग रख देता है और सब एक दूसरे से एक एक पत्ता लेते हुए इसी प्रकार का जोड़ मिलाकर निकालते हैं । अंत में जिसके पास अकेला गुलाम या निकाले हुए पत्ते का जोड़ बच रहता है, वही चोर और हारा हुआ समझा जाता है ।

गुलाम माल संज्ञा पुं॰ [अ॰ गुलाम + माल] थोड़े दामों की पर बहुता दिनों तक चलनेवाली और सब तरह का काम देनेवाली चीज । जैसे,—कबंल, लोई आदि ।