सिसकना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

सिसकना क्रि॰ अ॰ [अनु॰ या सं॰ सीत् + करण]

१. भीतर ही भीतर रोने में रुक रुककर निकलती हुई साँस छोड़ना । जैसे,— लड़का सिसक सिसककर रोता है ।

२. रोक रोककर लंबी साँस छोड़ते हुए भीतर ही भीतर रोना । शब्द निकालकर न रोना । खुलकर न रोना । उ॰—पिय बिन जिय तरसत रहे, पल भर बिरह सताय । रैन दिवस माहिं कल नहीं, सिसक सिसक जिय जाय ।—कबीर सा॰ सं॰, पृ॰ ४४ । मुहा॰—सिसकती भिनकती = मैली कुचैली और रोनी सूरत की (स्त्री) ।

३. जी धड़कना । धकधक्री होना । बहुंत भय लगना । जैसे,—वहाँ जाते हुए जो सिसकता है ।

४. उलटी साँस लेना । हिचकियाँ भरना । मरने के निकट होना ।

५. (प्राप्ति के लिये) तरसना, रोना । (पाने के लिये) व्याकुल होना । उ॰—प्रभुहिं बिलोकि मुनिगन पुलके कहत भूरि भाग भए सब नीच नारि नर हैं । तुलसी सो सुख लाहु लूटत किरात कोल जाको सिसकत सुर विधि हरि हर हैं ।—तुलसी (शब्द॰) ।