"पाषण्ड": अवतरणों में अंतर

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=== शब्दसागर ===
=== शब्दसागर ===
पाषंड ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ पाखण्ड या पाषण्ड] <br><br>१. वेद का मार्ग छोड़कर अन्य मत ग्रहण करनेवाला । वेदविरुद्ध आचरण करनेवाला । झूठा मत माननेवाला । मिथ्याधर्मी । विशेष— बौद्धों और जैनों के लिये प्राय: इस शब्द का व्यवहार हुआ है । कौलिक आदि भी इस नाम से पुकारे गए हैं । पुराणों में लिखा गया है कि पाषंड लोग अनेक प्रकार के वेश बनाकर इधर उधर घूमा करते हैं । पद्यपुराण में लिखा गया है कि 'पाषंडों' का साथ छोड़ना चाहिए और भले लोगों का साथ सदा करना चाहिए । मनु ने भी लिखा है कि कितव, जुआरी, नटवृत्तिजीवी, क्रूरचेष्ट और पाषंड इनको राज्य से निकाल देना चाहिए । ये राज्य में रहकर भलेमानुसों को कष्ट दिया करते हैं । <br><br>२. झूठा आडंबर खडा करनेवाल । लोगों को ठगने और धोखा देने के लिये साधुओं का सा रुप रंग बनानेवाला । धर्म- ध्वजी । ढोंगी आदमी । कपटवेशधारी । <br><br>३. संप्रदाय । मत । पंथ । विशेष— अशोक के शिलालेखों में इस शब्द का व्यवहार इसी अर्थ में प्रतीत होता है । यह अर्थ प्राचीन जान पड़ता है, पीछे इस शब्द को बुरे अर्थ में लेने लगे । 'पाषंड' का विशेषण 'पाषंडी' बनता है । इससे इसका संप्रदायवाचक होना सिद्ध होता है । नए नए संप्रदायों के खडे़ होने पर शुद्ध वैदिक लोग सांप्रदायिकों को तुच्छ दृष्टि से देखते थे ।
पाषंड ^१ संज्ञा पुं॰ सं॰<br><br>१. वेद का मार्ग छोड़कर अन्य मत ग्रहण करनेवाला । वेदविरुद्ध आचरण करनेवाला । झूठा मत माननेवाला । मिथ्याधर्मी । विशेष— बौद्धों और जैनों के लिये प्राय: इस शब्द का व्यवहार हुआ है । कौलिक आदि भी इस नाम से पुकारे गए हैं । पुराणों में लिखा गया है कि पाषंड लोग अनेक प्रकार के वेश बनाकर इधर उधर घूमा करते हैं । पद्यपुराण में लिखा गया है कि 'पाषंडों' का साथ छोड़ना चाहिए और भले लोगों का साथ सदा करना चाहिए । मनु ने भी लिखा है कि कितव, जुआरी, नटवृत्तिजीवी, क्रूरचेष्ट और पाषंड इनको राज्य से निकाल देना चाहिए । ये राज्य में रहकर भलेमानुसों को कष्ट दिया करते हैं । <br><br>२. झूठा आडंबर खडा करनेवाल । लोगों को ठगने और धोखा देने के लिये साधुओं का सा रुप रंग बनानेवाला । धर्म- ध्वजी । ढोंगी आदमी । कपटवेशधारी । <br><br>३. संप्रदाय । मत । पंथ । विशेष— अशोक के शिलालेखों में इस शब्द का व्यवहार इसी अर्थ में प्रतीत होता है । यह अर्थ प्राचीन जान पड़ता है, पीछे इस शब्द को बुरे अर्थ में लेने लगे । 'पाषंड' का विशेषण 'पाषंडी' बनता है । इससे इसका संप्रदायवाचक होना सिद्ध होता है । नए नए संप्रदायों के खडे़ होने पर शुद्ध वैदिक लोग सांप्रदायिकों को तुच्छ दृष्टि से देखते थे ।


पाषंड ^२ वि॰ दे॰ 'पाखंड' ।
पाषंड ^२ वि॰ दे॰ 'पाखंड' ।

१०:३९, २७ अक्टूबर २०२३ का अवतरण


हिन्दी

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

पाषंड ^१ संज्ञा पुं॰ सं॰

१. वेद का मार्ग छोड़कर अन्य मत ग्रहण करनेवाला । वेदविरुद्ध आचरण करनेवाला । झूठा मत माननेवाला । मिथ्याधर्मी । विशेष— बौद्धों और जैनों के लिये प्राय: इस शब्द का व्यवहार हुआ है । कौलिक आदि भी इस नाम से पुकारे गए हैं । पुराणों में लिखा गया है कि पाषंड लोग अनेक प्रकार के वेश बनाकर इधर उधर घूमा करते हैं । पद्यपुराण में लिखा गया है कि 'पाषंडों' का साथ छोड़ना चाहिए और भले लोगों का साथ सदा करना चाहिए । मनु ने भी लिखा है कि कितव, जुआरी, नटवृत्तिजीवी, क्रूरचेष्ट और पाषंड इनको राज्य से निकाल देना चाहिए । ये राज्य में रहकर भलेमानुसों को कष्ट दिया करते हैं ।

२. झूठा आडंबर खडा करनेवाल । लोगों को ठगने और धोखा देने के लिये साधुओं का सा रुप रंग बनानेवाला । धर्म- ध्वजी । ढोंगी आदमी । कपटवेशधारी ।

३. संप्रदाय । मत । पंथ । विशेष— अशोक के शिलालेखों में इस शब्द का व्यवहार इसी अर्थ में प्रतीत होता है । यह अर्थ प्राचीन जान पड़ता है, पीछे इस शब्द को बुरे अर्थ में लेने लगे । 'पाषंड' का विशेषण 'पाषंडी' बनता है । इससे इसका संप्रदायवाचक होना सिद्ध होता है । नए नए संप्रदायों के खडे़ होने पर शुद्ध वैदिक लोग सांप्रदायिकों को तुच्छ दृष्टि से देखते थे ।

पाषंड ^२ वि॰ दे॰ 'पाखंड' ।