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=== शब्दसागर ===
=== शब्दसागर ===
पूजा संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] <br><br>१. ईश्वर या किसी देवी देवता के प्रति श्रद्धा, संमान, विनय और समर्पण का भाव प्रकट करनेवाला कार्य । अर्चना । आराधन । <br><br>२. वह धार्मिक कृत्य जो जल, फूल, फल, अक्षत अथवा इसी प्रकार के और पदार्थ किसी देवी देवता पर चढ़ाकर या उसके निमित्त रखकर किया जाता है । आराधन । अर्चा । विशेष—पूजा संसार की प्रायः सभी आस्तिक और धार्मिक जातियों में किसी न किसी रूप में हुआ करती है । हिंदू लोग स्नान और शिखावंदन, आदि करके बहुत पवित्रता से पूजा करते हैं । इसके पंचोपचार, दशोपचार और षोडशोपचार ये तीन भेद माने जाते हैं । गंध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य से जो पूजा की जाती है उसे पंचोपचार; जिसमें इन पाँचों के अतिरिक्त पाद्य, अर्ध्य, आचमनीय, मधुपर्क और आचमन भी हो वह दशोपचार और जिसमें इन सबके अतिरिक्त आसन, स्वागत, स्नान, वसन, आभरण और वंदना भी हो वह षोडशोपचार कहलाती है । इसके अतिरिक्त कुछ लोग विशे- षतः तांत्रिक आदि १८, ३६ और ६४ उपचारों से भी पूजा करते हैं । पूजा के सात्विक, राजसिक और तामसिक ये तीन भेद भी माने जाते हैं । जो पूजा निष्काम भाव से, बिना किसी आडंबर के और सच्ची भक्ति से की जाती है वह सात्विक; जो सकाम भाव और समारोह से की जाय वह राजसिक; और जो बिना विधि, उपचार और भक्ति के केवल लोगों को दिखाने के लिये की जाय वह तामसिक कहलाती है । पूजा के नित्य, नैमित्तिक और काम्य के तीन और भेद माने जाते हैं । शिव, गणेश, राम, कृष्ण आदि की जो पूजा प्रतिदिन की जाती है वह नित्य, जो पूजा पुत्रजन्म आदि विशिष्ट अवसरों पर विशिष्ट कारणों से की जाती है वह नैमित्तिक और जो पूजा किसी अभीष्ट की सिद्धि के उद्देश्य से की जाती है वह काम कहलाती है । <br><br>३. आदर सत्कार । खातिर । आचभगत । यौ॰—पूजा प्रतिष्ठा । <br><br>४. किसी को प्रसन्न करने के लिये कुछ देना । भेंट । रिश्वत । जैसे, पुलिस की पूजा करना, कचहरी के अमलों की पूजा करना । <br><br>५. तिरस्कार । दंड । ताड़ना । प्रहार । कुटाई । जैसे,—जबतक इस लड़के की अच्छी तरह पूजा न होगी तबतक यह नहीं मानेगा ।
पूजा संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] <br><br>१. ईश्वर या किसी देवी देवता के प्रति श्रद्धा, संमान, विनय और समर्पण का भाव प्रकट करनेवाला कार्य । अर्चना । आराधन । <br><br>२. वह धार्मिक कृत्य जो जल, फूल, फल, अक्षत अथवा इसी प्रकार के और पदार्थ किसी देवी देवता पर चढ़ाकर या उसके निमित्त रखकर किया जाता है । आराधन । अर्चा । विशेष—पूजा संसार की प्रायः सभी आस्तिक और धार्मिक जातियों में किसी न किसी रूप में हुआ करती है । हिंदू लोग स्नान और शिखावंदन, आदि करके बहुत पवित्रता से पूजा करते हैं । इसके पंचोपचार, दशोपचार और षोडशोपचार ये तीन भेद माने जाते हैं । गंध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य से जो पूजा की जाती है उसे पंचोपचार; जिसमें इन पाँचों के अतिरिक्त पाद्य, अर्ध्य, आचमनीय, मधुपर्क और आचमन भी हो वह दशोपचार और जिसमें इन सबके अतिरिक्त आसन, स्वागत, स्नान, वसन, आभरण और वंदना भी हो वह षोडशोपचार कहलाती है । इसके अतिरिक्त कुछ लोग विशे- षतः तांत्रिक आदि १८, ३६ और ६४ उपचारों से भी पूजा करते हैं । पूजा के सात्विक, राजसिक और तामसिक ये तीन भेद भी माने जाते हैं । जो पूजा निष्काम भाव से, बिना किसी आडंबर के और सच्ची भक्ति से की जाती है वह सात्विक; जो सकाम भाव और समारोह से की जाय वह राजसिक; और जो बिना विधि, उपचार और भक्ति के केवल लोगों को दिखाने के लिये की जाय वह तामसिक कहलाती है । पूजा के नित्य, नैमित्तिक और काम्य के तीन और भेद माने जाते हैं । शिव, गणेश, राम, कृष्ण आदि की जो पूजा प्रतिदिन की जाती है वह नित्य, जो पूजा पुत्रजन्म आदि विशिष्ट अवसरों पर विशिष्ट कारणों से की जाती है वह नैमित्तिक और जो पूजा किसी अभीष्ट की सिद्धि के उद्देश्य से की जाती है वह काम कहलाती है । <br><br> पूर्जायते ह्यनेन इति पूजा <br><br> प्रत्येक मनुष्य जीवन में सुख, समृद्धि, शांति आदि की इच्छा करता है और जीवन के बाद भी स्वर्गादि की प्राप्ति हो। ये सभी कामना हैं जो दो प्रकार के सिद्ध होते हैं; पहला लौकिक और दूसरा पारलौकिक। शास्त्रों में चार पुरुषार्थ कहे गये हैं – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। लेकिन पुरुषार्थ चतुष्टय भी इन दोनों प्रकारों में सन्निहित है। पूजा की सामान्य परिभाषा इस प्रकार से की जाती है कि “जो लौकिक व पारलौकिक सुखों/भोगों को उत्त्पन्न करती है वही पूजा है।” – पूर्जायते ह्यनेन इति पूजा <br><br>३. आदर सत्कार । खातिर । आचभगत । यौ॰—पूजा प्रतिष्ठा । <br><br>४. किसी को प्रसन्न करने के लिये कुछ देना । भेंट । रिश्वत । जैसे, पुलिस की पूजा करना, कचहरी के अमलों की पूजा करना । <br><br>५. तिरस्कार । दंड । ताड़ना । प्रहार । कुटाई । जैसे,—जबतक इस लड़के की अच्छी तरह पूजा न होगी तबतक यह नहीं मानेगा ।


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२३:५६, १६ दिसम्बर २०२३ का अवतरण

हिन्दी

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

पूजा संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. ईश्वर या किसी देवी देवता के प्रति श्रद्धा, संमान, विनय और समर्पण का भाव प्रकट करनेवाला कार्य । अर्चना । आराधन ।

२. वह धार्मिक कृत्य जो जल, फूल, फल, अक्षत अथवा इसी प्रकार के और पदार्थ किसी देवी देवता पर चढ़ाकर या उसके निमित्त रखकर किया जाता है । आराधन । अर्चा । विशेष—पूजा संसार की प्रायः सभी आस्तिक और धार्मिक जातियों में किसी न किसी रूप में हुआ करती है । हिंदू लोग स्नान और शिखावंदन, आदि करके बहुत पवित्रता से पूजा करते हैं । इसके पंचोपचार, दशोपचार और षोडशोपचार ये तीन भेद माने जाते हैं । गंध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य से जो पूजा की जाती है उसे पंचोपचार; जिसमें इन पाँचों के अतिरिक्त पाद्य, अर्ध्य, आचमनीय, मधुपर्क और आचमन भी हो वह दशोपचार और जिसमें इन सबके अतिरिक्त आसन, स्वागत, स्नान, वसन, आभरण और वंदना भी हो वह षोडशोपचार कहलाती है । इसके अतिरिक्त कुछ लोग विशे- षतः तांत्रिक आदि १८, ३६ और ६४ उपचारों से भी पूजा करते हैं । पूजा के सात्विक, राजसिक और तामसिक ये तीन भेद भी माने जाते हैं । जो पूजा निष्काम भाव से, बिना किसी आडंबर के और सच्ची भक्ति से की जाती है वह सात्विक; जो सकाम भाव और समारोह से की जाय वह राजसिक; और जो बिना विधि, उपचार और भक्ति के केवल लोगों को दिखाने के लिये की जाय वह तामसिक कहलाती है । पूजा के नित्य, नैमित्तिक और काम्य के तीन और भेद माने जाते हैं । शिव, गणेश, राम, कृष्ण आदि की जो पूजा प्रतिदिन की जाती है वह नित्य, जो पूजा पुत्रजन्म आदि विशिष्ट अवसरों पर विशिष्ट कारणों से की जाती है वह नैमित्तिक और जो पूजा किसी अभीष्ट की सिद्धि के उद्देश्य से की जाती है वह काम कहलाती है ।

पूर्जायते ह्यनेन इति पूजा

प्रत्येक मनुष्य जीवन में सुख, समृद्धि, शांति आदि की इच्छा करता है और जीवन के बाद भी स्वर्गादि की प्राप्ति हो। ये सभी कामना हैं जो दो प्रकार के सिद्ध होते हैं; पहला लौकिक और दूसरा पारलौकिक। शास्त्रों में चार पुरुषार्थ कहे गये हैं – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। लेकिन पुरुषार्थ चतुष्टय भी इन दोनों प्रकारों में सन्निहित है। पूजा की सामान्य परिभाषा इस प्रकार से की जाती है कि “जो लौकिक व पारलौकिक सुखों/भोगों को उत्त्पन्न करती है वही पूजा है।” – पूर्जायते ह्यनेन इति पूजा

३. आदर सत्कार । खातिर । आचभगत । यौ॰—पूजा प्रतिष्ठा ।

४. किसी को प्रसन्न करने के लिये कुछ देना । भेंट । रिश्वत । जैसे, पुलिस की पूजा करना, कचहरी के अमलों की पूजा करना ।

५. तिरस्कार । दंड । ताड़ना । प्रहार । कुटाई । जैसे,—जबतक इस लड़के की अच्छी तरह पूजा न होगी तबतक यह नहीं मानेगा ।