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विभिन्न ग्रन्थों के वर्णन के अनुसार जिसमें वाल्मीकि रामायण में राजा दशरथ द्वारा किये गये अश्वमेध यज्ञ का वर्णन भी है।
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यह बिल्कुल गलत है कि अश्व की यज्ञ में बलि।दी जाती थी और अश्व की वसा (चर्बी) से यज्ञ किया जाता था। किसी भी यज्ञ में कोई भी पशु-पक्षी की बलि नहीं दी जाती थी।

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१३:५७, ११ मार्च २०२४ का अवतरण

यह बिल्कुल गलत है कि अश्व की यज्ञ में बलि।दी जाती थी और अश्व की वसा (चर्बी) से यज्ञ किया जाता था। किसी भी यज्ञ में कोई भी पशु-पक्षी की बलि नहीं दी जाती थी।

हिन्दी

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अश्वमेध संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. एक बड़ा यज्ञ । विशेष—इसमें घोड़े के मस्तक पर जयपत्र बाँधकर उसे भूमं- डल में घूमने के लिये छोड़ देते थे । उसकी रक्षा के निमित्त किसी वीर पुरुष को नियुक्त कर देते थे जो सेना लेकर उसके पीछे पीछे चलता था । जिस किसी राजा को अश्वमेध करनेवाले का अधिपत्य स्वीकृत नहीं होता था, वह उस घोड़े को बाँध लेता और सेना से युद्ध करता था । अश्व बाँधनेवाले को पराजित कर तथा घोड़े को छुड़ाकर सेना आगे बढ़ती थी । इस प्रकार वह घोड़ा संपूर्ण भूमंडल में घूमकर लौटता था, तब उसको मारकर उसकी चर्बी से हवन किया जाता था । यह यज्ञ केवल बड़े प्रतापी राजा करते थे । यह यज्ञ साल भर में होता था ।

२. एक प्रकार की तान जिसमें षडज स्वर को छो़ड़कर शेष छह स्वर लगते हैं ।