सामग्री पर जाएँ

"शूद्र": अवतरणों में अंतर

विक्षनरी से
सदस्य:Gotitbro के अवतरण 480351 को पुनर्स्थापित किया
टैग: Manual revert
शब्दसागर: बरियाई से शिल्प विद्या को गलत न परोशो ये शरीर बनाने वाले शिल्पी है। ब्रह्मांड बनने वाले शिल्पी है। दुनिया में जितना अविष्कार है। शब शिल्पी का देन है। पूरा ज्ञान न हो तो नही लिखना चाहिए
टैग: Reverted मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति ४: पंक्ति ४:


=== शब्दसागर ===
=== शब्दसागर ===
शूद्र संज्ञा पुं॰ [सं॰] [स्त्री॰ शूद्रा, शूद्री] <br><br>१. प्राचीन आर्यों के लोकविधान के अनुसार चार वर्णों में से चौथा और अंतिम वर्ण । विशेष—इनका कार्य अन्य तीन वर्णों की सेवा करना और शिल्प- कला के काम करना माना गया है । यजुर्वेद में शूद्रों की उपमा समाजरूपी शरीर के पैरों से दी गई है; इसीलिये कुछ लोग इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के पैरों से मानते हैं । इनके लिये गृहस्थाश्रम के अतिरिक्त और किसी आश्रम में जाने का निषेध है । आजकल इनमें से कुछ लोग अछूत और अंत्यज समझे जाते हैं । साधारणतः कोई इस वर्ण के लोगों का अन्न ग्रहण नहीं करना । पर्या॰—अवर वर्ण । वृषल । दास । पादज । अंत्यजन्मा । जघन्य । द्विजसेवक । अंत्यवर्ण । द्विजदास । उपासक । जघन्यज । <br><br>२. शूद्र जाति का पुरुष । <br><br>३. नैऋत्य कोण में स्थित एक देश का नाम । <br><br>४. बहुत ही खराब । निकृष्ट । <br><br>५. सेवक । दास ।
शूद्र संज्ञा पुं॰ [सं॰] [स्त्री॰ शूद्रा, शूद्री] <br><br>१. प्राचीन आर्यों के लोकविधान के अनुसार चार वर्णों में से चौथा और अंतिम वर्ण । विशेष—इनका कार्य अन्य तीन वर्णों की सेवा करना। यजुर्वेद में शूद्रों की उपमा समाजरूपी शरीर के पैरों से दी गई है; इसीलिये कुछ लोग इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के पैरों से मानते हैं । इनके लिये गृहस्थाश्रम के अतिरिक्त और किसी आश्रम में जाने का निषेध है । आजकल इनमें से कुछ लोग अछूत और अंत्यज समझे जाते हैं । साधारणतः कोई इस वर्ण के लोगों का अन्न ग्रहण नहीं करना । पर्या॰—अवर वर्ण । वृषल । दास । पादज । अंत्यजन्मा । जघन्य । द्विजसेवक । अंत्यवर्ण । द्विजदास । उपासक । जघन्यज । <br><br>२. शूद्र जाति का पुरुष । <br><br>३. नैऋत्य कोण में स्थित एक देश का नाम । <br><br>४. बहुत ही खराब । निकृष्ट । <br><br>५. सेवक । दास ।


[[श्रेणी: हिन्दी-प्रकाशितकोशों से अर्थ-शब्दसागर]]
[[श्रेणी: हिन्दी-प्रकाशितकोशों से अर्थ-शब्दसागर]]

०९:२७, १६ मार्च २०२४ का अवतरण

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

शूद्र संज्ञा पुं॰ [सं॰] [स्त्री॰ शूद्रा, शूद्री]

१. प्राचीन आर्यों के लोकविधान के अनुसार चार वर्णों में से चौथा और अंतिम वर्ण । विशेष—इनका कार्य अन्य तीन वर्णों की सेवा करना। यजुर्वेद में शूद्रों की उपमा समाजरूपी शरीर के पैरों से दी गई है; इसीलिये कुछ लोग इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के पैरों से मानते हैं । इनके लिये गृहस्थाश्रम के अतिरिक्त और किसी आश्रम में जाने का निषेध है । आजकल इनमें से कुछ लोग अछूत और अंत्यज समझे जाते हैं । साधारणतः कोई इस वर्ण के लोगों का अन्न ग्रहण नहीं करना । पर्या॰—अवर वर्ण । वृषल । दास । पादज । अंत्यजन्मा । जघन्य । द्विजसेवक । अंत्यवर्ण । द्विजदास । उपासक । जघन्यज ।

२. शूद्र जाति का पुरुष ।

३. नैऋत्य कोण में स्थित एक देश का नाम ।

४. बहुत ही खराब । निकृष्ट ।

५. सेवक । दास ।