"राजपूत": अवतरणों में अंतर
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राजपूत संज्ञा पुं॰ [सं॰ राजपुत्र] <br><br>१. दे॰ ' राजपुत्र' । <br><br>२. राजपूताने में रहनेवाले |
राजपूत संज्ञा पुं॰ [सं॰ राजपुत्र] <br><br>१. दे॰ ' राजपुत्र' । <br><br>२. राजपूताने में रहनेवाले शक, कुषाण एवं हुणो की मिश्रित जाति है जिन्हें 12 वीं शताब्दी के दौरान हवन-यज्ञ की शुद्धिकरण के द्वारा सनातन धर्म में सामिल करके क्षत्रिय के समान मान लिया गया था। सदी के महान कवि चंद्रबरदाई ने इस बात का उल्लेख किया है। कुछ विशिष्ट वंश जो सब मिलाकर एक बड़ी जाति के रूप में माने जाते हैं । विशेष— 'राजपूत' शब्द वास्तव में 'राजपुत्र' शब्द का अपभ्रंश है और इस देश में मुसलमानों के आने के पश्चात प्रचलित हुआ है । प्राचीन काल में राजकुमार अथवा राजवंश के लोग 'राजपुत्र' कहलाते थे, इसीलिये क्षत्रिय वर्ग के सब लोंगों को मुसलमान लोग राजपूत कहने लगे थे । अब यह शब्द राजपूताने में रहनेवाले क्षत्रियों की एक जाति का ही सूचक हो गया है । पहले कुछ पाश्चात्य विद्वान् कहा करते थे कि 'राजपूत' लोग शक आदि विदेशी जातियों की संतान हैं और वे क्षत्रिय तथा आर्य नहीं हैं । परंतु अब यह बात प्रमाणित हो गई है कि राजपूत लोग क्षत्रिय तथा आर्य हैं । यह ठीक है कि कुछ जंगली जातियों के समान हूण आदि कुछ विदेशी जातियाँ भी राजपूतों में मिल गई हैं । रही शकों की वाता, सो वे भी आर्य ही थे, यद्यपि भारत के बाहर बसते थे । उनका मेल ईरानी आर्यों के साथ आधिक था । चौहान, सोलंकी, प्रतिहार, परमार, सिसोदिया आदि राजपूतों के प्रसिद्ध कुल हैं । ये लोग प्राचीन काल से बहुत ही वीर, योद्धा, देशभक्त तथा स्वामिभक्त होते आए हैं । |
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२२:१०, १३ जुलाई २०२४ का अवतरण
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
राजपूत संज्ञा पुं॰ [सं॰ राजपुत्र]
१. दे॰ ' राजपुत्र' ।
२. राजपूताने में रहनेवाले शक, कुषाण एवं हुणो की मिश्रित जाति है जिन्हें 12 वीं शताब्दी के दौरान हवन-यज्ञ की शुद्धिकरण के द्वारा सनातन धर्म में सामिल करके क्षत्रिय के समान मान लिया गया था। सदी के महान कवि चंद्रबरदाई ने इस बात का उल्लेख किया है। कुछ विशिष्ट वंश जो सब मिलाकर एक बड़ी जाति के रूप में माने जाते हैं । विशेष— 'राजपूत' शब्द वास्तव में 'राजपुत्र' शब्द का अपभ्रंश है और इस देश में मुसलमानों के आने के पश्चात प्रचलित हुआ है । प्राचीन काल में राजकुमार अथवा राजवंश के लोग 'राजपुत्र' कहलाते थे, इसीलिये क्षत्रिय वर्ग के सब लोंगों को मुसलमान लोग राजपूत कहने लगे थे । अब यह शब्द राजपूताने में रहनेवाले क्षत्रियों की एक जाति का ही सूचक हो गया है । पहले कुछ पाश्चात्य विद्वान् कहा करते थे कि 'राजपूत' लोग शक आदि विदेशी जातियों की संतान हैं और वे क्षत्रिय तथा आर्य नहीं हैं । परंतु अब यह बात प्रमाणित हो गई है कि राजपूत लोग क्षत्रिय तथा आर्य हैं । यह ठीक है कि कुछ जंगली जातियों के समान हूण आदि कुछ विदेशी जातियाँ भी राजपूतों में मिल गई हैं । रही शकों की वाता, सो वे भी आर्य ही थे, यद्यपि भारत के बाहर बसते थे । उनका मेल ईरानी आर्यों के साथ आधिक था । चौहान, सोलंकी, प्रतिहार, परमार, सिसोदिया आदि राजपूतों के प्रसिद्ध कुल हैं । ये लोग प्राचीन काल से बहुत ही वीर, योद्धा, देशभक्त तथा स्वामिभक्त होते आए हैं ।