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अजीर्ण

विक्षनरी से

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अजीर्ण ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. अपच । अध्यसन । बदहजमी । विशेष—प्रायः पेट में पित्त के बिगड़ने से यह रोग होना है जिससे भोजन नहीं पचता और वमन, दस्त शूल आदि उपद्रव होते हैं । आयुर्वेद में इसके छह भेद बतलाए हैं: —(१) आमा- जीर्ण = जिसमें खाया हुआ अन्न कच्चा गिरे । (२) विदग्धा जीर्ण = जिसमें अन्न जल जाता है । (३) विष्टब्धाजीर्ण = जिसमें अन्न के गोटे या कंडे बँधकर पेट में पीड़ा उत्पन्न करते हैं । (४) रसशेषाजीर्ण = जिसमें अन्न पानी की तरह पतला होकर गिरता है । (५) दिनपाकी अजीर्ण = जिसमें खाया हुआ अन्न दिन भर पेट में बना रहता है और भूख नहीं लगती । (६) प्रकृत्याजीर्ण या सामान्य अजीर्ण ।

२. अत्यंत अधिकता । बहुतायत (व्यंग्य) । जैसे—'उसे बुद्धि का अजीर्ण हो गया है ।' —(शब्द॰) ।

३. शक्ति । ताकत (को॰) । ४, जीर्ण न होने का भाव । क्षयाभाव (को॰) ।

अजीर्ण ^२ वि॰ जो पुराना न हो । नया ।