अतिशयोक्ति
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
अतिशयोक्ति संज्ञा॰ स्त्री॰ [सं॰]
१. किसी बात को बढ़ा चढ़ाकर कहना ।
२. एक अलंकार । विशेष—इसमें उपमान से उपमेय का निगरण लोकसीमा का उल्लंधन प्रधान रुप दिखाया जाता है । जैसे—'गोपिन के अँसुवान के नीर पनारे भए पुनि ह्वै गए नारे । नारे भए नदियाँ बढ़िकै, नदियाँ नद ह्वै गई काटि किनारे । बेगि चलो तो चलो ब्रज में कवि तोख कहै ब्रजराज हमारे । वे नद चाहत सिंधु भए अरु सिंधु ते ह्वै हैं हलाहल सारे' (शब्द॰) । इसके पाँच मुख्य भेद माने गए हैं; यथा—(१) रुपकातिशयोक्ति (२) भेद कातिशयोक्ति, (३) संबंधातिशयोक्ति (४) असंबंधातिशयक्ति और (५) पंचम भेद के अंतर्गत अक्रमातिशयोक्ति, चपला- तिशयोक्ति तथा अत्यातिशयोक्ति हैं ।