अलंकार
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
अलंकार संज्ञा पुं॰ [सं॰ अलङ्कार] [वि॰ अलंकृत]
१. आभूषण । गहना । जेवर ।
२. अर्थ और शब्द की वह युक्ति जिससे काव्य की शोभा हो । वर्णन करने की वह रीति उसमें प्रभाव और रोचकता आ जाय ।
विशेष—इसके तीन भेद हैं—
(क) शब्दालंकार, अर्थात् वह अलंकार जिसमें शब्दों का सौंदर्य हो, जैसे अनुप्रास;
(ख) अर्थालंकार, जिसके अर्थ में चमत्कार हो, जैसे उपमा और रूपक और किसी किसी आचार्य के मत से
(ग) उभयालंकार जिसमें शब्द और अर्थ दोनों का चमत्कार हो । आदि में भरत मुनि ने चार ही अलंकार माने हैं—उपमा, दीपक, रूपक और यमक । उन्होंने अलंकारों के धर्म को इन्हीं के अतंर्गत माना है । अलंकार यथार्थ में वर्णन करने की शैली है, वर्णन का विषय नहीं । पर पीछे वर्ण नीय विषयों को भी अलंकार मान लेने से अलंकारों की संख्या और भई बढ़ गई । स्वभावोक्ति औक उदात्त आदि अलंकार इसी प्रकार के हैं ।
३. वह हाव, भाव या क्रिया आदि जिससे स्त्रियों का सौंदर्य बढ़े ।
४. सजावट । मंडप [को॰] ।
५. अलंकार संबंधी शास्त्र [को॰] ।