आयुर्वेद
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]आयुर्वेद संज्ञा पु॰ [सं॰] [वि॰ आयुर्वेदीय] आयु संबंधी शास्त्र । चिकित्साशास्त्र । वैद्य विद्या । विशेष—इस शास्त्र के आदि आचार्य अशिवनीकुमार माने जाते हैं जिन्होनें दक्ष प्रजापति के धड़ में बकरे का सरि जोड़ा था । अश्विनीकुमारों से इंद्र ने यह विद्या प्राप्त की । इंद्र ने धन्वंतरि को सिखाया । काशी के राजा दिवोदास धन्वंतरि के अवतार कहे गए हैं । उनसे जाकर सुश्रुत ने आयुर्वैद पढ़ा । अत्रि और भरद्वाज भी इस शास्त्र के प्रवर्तक माने जाते हैं । चरक की संहिता भी प्रसिद्ध है । आयुर्वैद अथर्ववेद का उपांग माना जाता है । इसके आठ अंग हैं । (१) शल्य (चीरफाड़), (२) शालाक्य (सलाई), (३) कायचिकित्सा (ज्वर, अतिसार आदि की चिकित्सा), (४) भूत विद्या (झाड़— फूँक), (५) कौमारपत्र (बालचिकित्सा), (६) अगदतंत्र (बिच्छू, साँप आदि के काटने की दवा), (७) रसायन और (८) बाजीकरण । आयुर्वेद शरीर में बात, पित्त, कफ मानकर चलता है । इसी से उसका निदानखंड कुछ संकुचित सा हो गया है । आय़ुर्वेद के आचार्य ये हैं— अश्विनीकुमार, धन्वतरि, दिवोदास (काशिराज), नकुल, सहदेव, अर्कि, च्यवन, जनक, बुध, जावाल, जाजलि, पैल, करथ, अगस्त, अत्रि तथा उनके छ: शिष्य (अग्निवेश, भेड़, जातूकर्ण, पराशर, सीरपाणि हारीत), सुश्रुत और चरक ।