इलायची
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]इलायची संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ एल+ ची, फा॰ 'च' (प्रत्य॰)] एक सदाबहार पेड़ जिसकी शाखाएँ खड़ी और चार से आठ फुट तक ऊँची होती हैं । यह दक्षिण में कनारा, मैसूर, कुर्ग तिरुवांकुर और मदुरा आदि स्थानों के पहाड़ी, जंगलों में आप से आप होता है । यह दक्षिण में लगाया भी बहुत जाता है । विशेष—इलायची के दो भेद होते है, सफेद (छोटी) और काली (बड़ी) । सफेद इलायची दक्षिण में होती है और काली इलायची या बड़ी इलायची नैपाल में होती है, जिसे बँगला इलायची भी कहते हैं । बड़ो इलायची तरकारी आदि तथा नमकीन भोजनों के मसालों में दी जाती है । छोटी इलायची मीठी चीजों में पड़ती है और पान के साथ खाई जाती है । सफेद या छोटी इलायची के भी दो भेद होते हैं—मलाबार की छोटी और मैसूर की बड़ी । मलाबारी इलायची की पत्तियाँ मैसूर इलायची से छोटी होती है और उनकी दूसरी ओर सफद सफेद बारीक रोई होती है । इसका फल गोलाई लिये होता है । मैसुर इलायची की पत्तियाँ मलाबारी से बड़ी होती हैं और उनमों रोईं नहीं होती । इसके लिये तर और छायादार जमीन चाहिए, जहाँ से पानी बहुत दूर न हो । यह कुहरा और समुद्र की ठंढी हवा पाकर खूब बढ़ती है । इसे धूप और पानी दोनों से बचाना पड़ता है । क्वार कार्तिक में यह बोई जाती है, अर्थात् इसकी बेहन डाली जाती है ।१७-१८ महीने में जब पौधे चार फुट के हो जाते है, तब उन्हें खोदकर सुपारी के पेड़ो के नीचे लगा देते हैं और पत्ती की खाद देते रहते हैं । लगाने के एक ही वर्ष के भीतर यह चैत बैसाख में फूलने लगते है और असाढ़ सावन तक इसमें ढोंढ़ी लगती है । क्वार कातिक में फल तैयार हो जाता है और इसके गुच्छे या घौद तोड़ लिए जाते है और दो तीन दिन सुखाकर फलों को मलकर अलग कर लेते हैं । एक पेड़ में पाव भर लगभग इलायची निकलती है । इसका पैड़ १० या १२ वर्ष तक रहता है । कुर्ग से इलायची गुजरात होकर और प्रांतों में जाती थी, इसी से इसे गुजराती इलायची भी कहते हैं । यौ॰.—इलायची डोरा=इलायची की ढोंढ़ी ।
इलायची पंडू † संज्ञा पुं॰ [देश.] एक प्रकार का जंगली फल ।