करी
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]करी ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ करिन्] [स्त्री॰ करिणी]
१. हाथी । उ॰— दीरघ दरीन बसै केशोदास केसरी ज्यों केसरी को देखे बन करी ज्यों कँपत हैं ।—केशव (शब्द॰) ।
करी ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ काणड़ > * काण्डिका] छत पाटने का शहतीर । धरन । कड़ी ।
करी ^३ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ कली] कली । अनखिला फुल । उ॰— कहुँ सुगंध कनि कसि निरमरी । भा अलि संग कि अबहीं करी ।— जायसी ग्र॰ ( गुप्त), पृ॰ ९४ ।
२. १५ मात्राओं का एक छँद जिसको चौपैया भी कहते है । उ॰— चलत कहों मधुर भूपाल । दखिनी आवत तुम पै हाल ।— सूदन (शब्द॰) ।
करी ^४ वि॰ [सं॰ कर प्रत्य॰ का स्त्री॰]
१. करने या करानेवाली । जैसे, प्रलयंकरी ।
२. प्राप्त करानेवाली । उत्पन्न करानेवाली । जैसे, अर्थकरी ।