कोठा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]कोठा संज्ञा पुं॰ [सं॰ कोष्ठक]
१. बड़ी कोठरी । चौड़ा कमरा ।
२. कमरा । वह स्थान जहाँ बहुत सी चीजें संग्रह करके रखी जाय । भंडार । यौ॰—कोठादार । कोठारी ।
३. मकान में छत या पाटन के ऊपर का कमरा । अटारी । बड़ा मकान । व्यापारी, महाजन या संपन्न व्यक्ति का पक्का बड़ा मकान । यौ॰—कोठेवाली=बाजारू स्त्री । वेश्या । मुहा॰—कोठे पर चढ़ना=किसी ऐसे स्थान पर पहुँचाना जहाँ सब लोग देख सकें । अधिक ज्ञात या प्रसिद्ध होना । जैसे,— (बात) ओठो निकली, कोठों चढ़ी । कोठे पर बैठना=वेश्या बनाना । कसब कमाना ।
४. उदर । पेट । पक्वाशय । मुहा॰—कोठा बिगड़ना=अपच आदि रोग होना । कोठा साफ होना=साफ दस्त होने के बाद पेट का हलका हो जाना ।
५. गर्भाशय । धरन । मुहा॰—कोठा बिगड़ना=गर्भाशय में किसी प्रकार का रोग होना ।
६. खाना । घर । जैसे,—शतरंज या चौपड़ के कोठ । मुहा॰—कोठा खींचना=लकीरों से खाना बनाना । कोठा भरना= हिंदुओं में कार्तिक स्नान करनेवाली स्त्रियों का विशेष तिथियों को भूमि पर ३५ खाने खींचकर ब्राह्मण को दान देने के अभिप्राय से उनमें अन्न, वस्त्र आदि पदार्थ भरना ।
७. किसी एक अंक का पहाड़ा जो एक खाने में लिखा जाता है । जैसे,—आज उसने चार कोठे पहाड़े याद किए ।
८. शरीर या मस्तिष्क का कोई भीतरी भाग, जिसमें कोई विशेष शक्ति रहती हो । मुहा॰—कोठों में चित्त भरमना या जाना=अनेक प्रकार की आशंकाएँ होना । जैसे,—तुम्हारे चले जाने पर मुझे बहुत चिंता हुई, न जाने कितने कोठों में चित्त भरमा । किसी कोठे में चित्त जाना=किसी प्रकार की प्रवृत्ति या वासना होना । अंधें कोठे का=मूर्ख । बेवकूफ । विचारशून्य । कोठा न होना या कोठा साफ होना=अंतःकरण शुद्ध होना । हृदय में कोई बुरा विचार न रहना ।