क्षत्रिय
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]क्षत्रिय संज्ञा पुं॰ [सं॰] [स्त्री॰ क्षत्रिया, क्षत्राणी]
१. हिंदुओं के चार वर्णों में से कूसरा वण । विशेष—इस वर्ण के लोगों का काम देश का शासन और शत्रुओं से उसकी रक्षा करना है । मनु के अनुसार इस वर्ण के लोगों का कर्तव्य वेदाध्ययन, प्रजापालन, दान और यज्ञादि करना तथा विषयवासना से दूर रहना है । वशिष्ठ जी ने इस वर्ण के लोगों का मुख्य धर्म अध्ययन, शस्त्राभ्यास और प्रजापालन बतलाया है । वेद में इस वर्ण के लोगों की सृष्टि प्रजापति की बाहु से कही गई है । वेद में जिन क्षत्रिय वंश के नाम हैं, वे पुराणों में दिए हुए अथवा वर्तमान नामों से बिलकुल भिन्न हैं । पुराणों में क्षत्रियों के चंद्र और सूर्य केवल दो ही वंशों के नाम् आए हैं । पीछे से इस वर्ण में अग्नि तथा और कई वंशों की सृष्टि हुई और शक आदि विदेशी लोग आकर मिल गए । आजकल इस वर्ण के बहुत से अवांतर भेद हो गए हैं । इस वर्ण के लोग प्रायः ठाकुर कहलाते हैं ।
२. इस वर्ण का पुरुष ।
३. राजा ।
४. बल । शक्ति ।