घी
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]घी संज्ञा पुं॰ [पुं॰ घृत, प्रा॰ घीअ] दूध का चिकना सार जिसमें से जल का अंश तपाकर निकाल दिया गया हो । तपाया हुआ मक्खन । घृत । मुहा॰—घी कड़कड़ाना=साफ और सोंधा करने के लिये घी को तपाना । घी का कुप्पा लुंढ़ना या लुढ़काना=(१) किसी बहुत बड़े धनी का मर जाना । किसी बड़े आदमी की मृत्यु होना । (२) भारी हानि होना । बहुत नुकसान होना । घी के कुप्पे से जा लगाना=किसी ऐसे स्थान तक पहुंच जाना जहाँ खूब प्राप्ति हो । किसी ऐसे धनी तक पहुंच होना जहाँ खूब माल मिले । घी के चीराग जलाना=दे॰ 'घी के दीए जलना' । उ॰—यह कहो कि आज ठाकुर साहब घी के चिराग जलाएँगे । फिसाना॰, भा॰ ३, पृ॰ १९६ । घी का डोर=घी की धार जो दाल आदि में डालते समय बँध जाती है । घी का डोरा डालना=किसी के भोजन में तपाया हुआ घी डालना । घी के जलना=दे॰ 'घी के दीए जलना' । घी के दीए जलना= (१) कामना पूरी होना । मनोरथ सफल होना । (२) आनंद मंगल होना । उत्सब होना । (३) सुख सौभाग्य की दशा होना । धन धान्य की पूर्णाता होना । समृद्धि होना । ऐश्वर्य होना । घी के दिए जलाना=(१) आनंद मंगल मनाना । उत्सव मनाना ।
२. सुख संपत्ति का भोग करना । बड़े सुख चैन से रहना । घी के दिए (दीप) भरना=(१) आनंद मंगल मनाना । उत्सव मनाना । उ॰—भूप गहे ऋषिराज के पाय कहयो अब दीप भरो सब घी के ।—हनुमान (शब्द॰) (२) सुख संपत्ति का भोग करना । बड़े सुख चैन से रहना । घी खिचड़ी=खूब मिला जुला । घी खिचड़ी होना=खूब मिल जुल जाना । अभिन्न हृदय होना । (किसी की) पाँचों उँगलियाँ घो में होना=खूब अराम चैन का मौका मिलना । सुख भोग का अवसर मिलना । खूब लाभ होना । घी गुड़ देना=अच्छी खातिर करना । उ॰—आगत का स्वागत समुचित है, पर क्या आँसू लेकर ? प्रिय होते तो ले लेती उसको मैं घी गुड़ देकर ।—साकेत पृ॰ २८२ ।