चना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]चना संज्ञा पुं॰ [सं॰ चणक] चैती फसल का एक प्रधान अन्न जिसका पौधा हाथ ड़ेढ़े हाथ तक ऊँचा होता है । विशेष—इसकी छोटी कोमल पत्तियाँ कुछ खटाई और खार लिए होती हैं और खाने में बहुत स्वदिष्ट होतो हैं । इस अन्न के दाने प्रायः गोल होते हैं और इसके ऊपर का छिलका उतार देने पर अंदर से दो दालें निकलती हैं, जो ओर दालो की तरह उबालकर खाई जाती हैं । यह इनेक प्रकार से खाने के काम आता है । ताजा चना लोग कच्चा भी खाते है; और सूखा चना भाड़ में भूनकर खाया जाता है । इससे कई तरह की मिठाइयाँ और खाने की नमकीन चीजें बनती हैं । यह वहुत बलवर्द्धक और पुष्टिदायक समझा जाता है, पर कुछ गुरुपाक होता है । भारत में यह घोड़ों और दूसरे चौपायो की बलिष्ठ करने के लिये दिया जाता है । वैद्यक में इसे मधुर रूखा और मेह, कृमि तथा रकतपित्त नाशक, दीपन, रुचि तथा बलकारक माना गया है । इसे बूट, छोले और रहिला भी कहते हैं ।