चुप
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]चुप वि॰ [सं॰ चुप (चोपन) = मौन] जिसके मुँह से शब्द न निकले । अवाक् । मौन । खामोश । जैसे,—चुप रहो । बहुत मत बोलो । क्रि॰ प्र॰—करना ।—रहना ।—साधना ।—होना । यौ॰—चुपचाप = (१) मौन । खामोश । (२) शांत भाव से । बिना चंचलता के । जैसे,—यह लड़का घड़ी भर भी चुपचाप नहीं बैठता । (३) बिना कुछ कहे सुने । बिना प्रकट किए । गुप्त रीति से । धीरे से । छिपे छिपे । जैसे,—(क) वह चुप- चाप रुपया लेकर चलता हुआ । (ख) उसने चुपचाप उसके हाथ में रुपए दे दिए । (४) निरुद्योग । प्रयत्नहीन । अयत्न- वान् । निठल्ला । जैसे—अब उठो, यह चुपचाप बैठने का समय नहीं है । चुपचुप = दे॰ 'चुपचाप' । चुपछिनाल = (१) छिपे छिपे व्यभिचार करनेवाली स्त्री । (२) छिपे छिपे कोई काम करनेवाला । गुप्त गुंडा । छिपा रुस्तम । मुहा॰—चुप करना = (१) बोलने न देना । †(२) चुप होना । मौन रहना । जैसे,—चुप करके बैठो । चुपनाधना, चुप लगाना, चुप साधना = मौनावलंबन करना । खामोश रहना । †चुप मापना = मौन होना । चुपके से = दे॰ 'चुपका' का मुहा॰ ।
चुप ^२ संज्ञा स्त्री॰ मौन । खामोशी । जैसे,—(क) सबसे भली चुप । (ख) एक चुप सौ को हरावे । उ॰ ऐसी मीठी कुछ नहीं जैसी मीठी चुप । कबीर (शब्द॰) ।
चुप ^३ संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] पक्के लोहे की वह तलवार जिसमें टूटने से बचाने के लिये एक कच्चा लोहा लगा रहता है ।