चोट
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]चोट संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ चुट (= काटना)]
१. एक वस्तु पर किसी दूसरी वस्तु का वेग के साथ पतन या टक्कर । आघात । प्रहार । मार । जैसे,— लाठी की चोट, हथौडे की चोट । उ॰— पत्थर की चोट से यह शीशा फूटा है । — (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰ — देना ।— पडना ।— पहुँचाना ।— मारना ।— लगना ।— लगाना ।— सहना । मुहा॰— चोट खाना = आघात ऊपर लेना । प्रहार सहना ।
२. आघात या प्रहार का प्रभाव । घाव । जख्म । जैसे, — (क) चोट पर पट्टी बाँध दो । (ख) उसे सिर में बडी चोट आई । यौ॰— चोट चपेट = घाव । जख्म । क्रि॰ प्र॰— आन ।— पहुँचना ।—लगना । मुहा॰—चोट उभरना = चोट में फिर से पीडा होना । चोट खाए हुए स्थान का फिर से दर्द करना ।
३. किसी को मारने के लिये हथियार आदि चलाने की क्रिया । वार । आक्रमण । क्रि॰ प्र.— करना ।— सहना । मुहा.— चोट खाली जाना = वार का निशाने पर न बैठना । आक्रमण व्यर्थ होना । चोट बचाना = चोट न लगने देना ।
४. किसी हिंसक पशु का आक्रमण । किसी जानवर का काटने या खाने के लिये झपटना । जैसे, —यह जानवर आदमियों पर बहुत कम चोट करता है । क्रि॰ प्र॰ — करना ।
५. हृदय पर का आघात । मानसिक व्यथा । मर्मभेदी दु:ख । शोक । संताप । जैसे, — इस दुर्घटना से उन्हें बडी चोट पहुँची ।
६. किसी के अनिष्ट के लिये चली हुई चाल । एक़ दूसरे को परास्त करने की युक्ति । एक दूसरे की हानि के लिये दाँव पेंच । चकाचकी ।जैसे, — आजकल दोनों में खूब चोटें चल रही हैं । क्रि॰ प्र॰— चलना ।
७. व्यंग्यपूर्ण विवाद । आवाजा । बौछार । ताना । जैसे,— इन दोनों कवियों में खूब चोटें चलती हैं ।
८. विश्वासघात । धोखा । दगा । जैसे,— यह आदमी ठीक वक्त पर चोट कर जाता है ।
९. बार । दफा । मरतबा । उ॰— (क) आओ एक चोट हमारी तुम्हारी हो जाय । (ख) कल यह बूलबूल कईचोट लडा । विशेष— इस अर्थ में इस शब्द का प्रयोग प्राय: ऐसे ही कार्यों के लिये होता है जिसमें विरोध की भावना होती है ।