जन
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]जन संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. लोक । लोग । यौ॰—जनअपवाद = अफवाह । लोकापवाद । उ॰—जन अपवाद गूँजता था, पर दूर ।—अपरा, पृ॰ १३९ । जन आंदोलन = उद्देश्यपूर्ति के लिये जनसमूह द्वारा किया हुआ सामूहिक प्रयत्न या हलचल । जनजीवन = लोकजीवन । जनप्रवाद । जनक्षय । जनश्रुति । जनवल्लभ । जनसमूह । जनसमाज । जनसमुदाय । जनसमुद्र = जनसमूह । जनसाधारण । जनसेवक । जनसेवा, आदि ।
२. प्रजा ।
३. गँवार । देहाती ।
४. जाति ।
५. वर्ग । गण । उ॰—आर्य लोग इस समय अनेक जनों में विभक्त थे । प्रत्येक जन एक पृथक् राजनैतिक समूह मालूम होता है ।—हिंदु॰ सभ्यता, पृ॰ ३३ ।
६. अनुयायी । अनुचर । दास । उ॰— (क) हरिजन हंस दशा लिए डोलैं । निर्मल नाम चुनी चुनि बोलैं ।—कबीर (शब्द॰) । (ख) हरि अर्जुन कौ निज जन जान । लै गए तहँ न जहाँ ससि भान ।—सूर॰, १० । ४३०९ । (ग) जन मन मंजु मुकर मन हरनी । किए तिलक गुन गन बस करनी ।—तुलसी (शब्द॰) । यौ॰—हरिजन ।
७. समूह । समुदाय । जैसे, गुणिजन ।
८. भवन ।
९. वह जिसकी जीविका शरीरिक परिश्रम करके दैनिक वेतन लेने से चलती हो ।
१०. सात महाव्याहृतियों में से पाँचवीं व्याहृति ।
११. सात लोकों में से पाँचवाँ लोक । पुराणनुसार चौदह लोकों के अंतर्गत ऊपर के सात लोकों में सें पाँचवाँ लोक जिसमें ब्रह्मा के मानसपुत्र और बड़े बड़े योगींद्र रहते हैं ।
१२. एक राक्षस का नाम ।
१३. मनुष्य । व्यक्ति ।
जन ^२ संज्ञा स्त्री॰ [फ़ा॰ जन]
१. महिला । नारी ।
२. स्त्री । पत्नी । भार्या । उ॰—मुसल्ला बिछा उसका जन बनियाज ।—दक्खिनी॰, पृ॰ २१५ ।
जन ^३पु वि॰ [सं॰ जन्य] उत्पन्न । जनित । जात । उ॰—सतसैया तुलसी सतर तम हरि पर पद देत । तुरत अबिद्या जन दुरित बर तुल सम करि लेत ।—स॰ सप्तक, पृ॰ २५ ।