जागना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]जागना ^१ क्रि॰ अ॰ [सं॰ जागरण]
१. सोकर उठना । नींद त्यागना । उ॰—आइ जगावहिं चेला जागहु । आवा गुरू पाय उठि लागहु । —जायसी (शब्द॰) । संयो॰ क्रि॰—उठना ।—पड़ना ।
२. निद्रारहित रहना । जाग्रत अवस्था में होना ।
३. सजग होना । चैतन्य होना । सावधान होना । उ॰—जरठाई दसा रबि काल उयो अजहूँ जड़ जीव न जागहि रे ।—तुलसी (शब्द॰) ।
४. उदित होना । चमक उठना । उ॰—(क) भागत अभाग अनुरागत विराम भाम जागत आलस तुलसी से निकाम कै ।— तुलसी (शब्द॰) । (ख) निश्चय प्रेम पौर एहि जागा । कसे कसौटी कंचन लागा । —जायसी (शब्द॰) ।
५. संमृद्ध होना । बढ़ चढ़कर होना । उ॰—पद्माकर स्वादु सुधा तें सरें मधु तें महा माधुरी जागती है ।—पद्माकर (शब्द॰) ।
६. जोर शोर से उठना । समुत्थित होना । जैसे, लोकमत का जागना ।
७. प्रज्वलित होना । जलना ।
८. प्रादूभूँत होना । अस्तित्व प्राप्त करना ।
९. प्रसिद्ध होना । मशहूर होना । उ॰—खायो खोंचि माँगि मैं तेरो नाम लिया रे । तेरे बल बलि आजु लौं जग जागि जीया रे । —तुलसी (शब्द॰) ।
जागना ^२पु क्रि॰ अ॰ [सं॰ यजन] यज्ञ करना । उ॰—पयसि पयागे जाग सत जागइ सोई पावए बहू भागी । विद्यापति, पृ॰ ४१० ।