जो
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]जो हाथ धोने लिये किसी महापुरुष को उसके आने पर दिया जाय । उ॰—आदर अरघ देइ घर आने । सोरह भाँति पूजि सनमाने ।—तुलसी (शब्द॰) ।
३. वह जल जो बरात के आने पर वहाँ भेजा जाता है । उ॰—गिरिबर पठए बोलि लगन बेरा भई । मंगल अरघ पावड़े देत चले लई ।—तुलसी ग्रं॰ पृ॰ ३९ ।
४. वह जल जो किसी के आने पर दरवाजे पर उसके सामने आनंदप्रकाशनार्थ ढरकाया जाता है । ढरकावन । उ॰—गजमुकुता हीरामनि चोक पुराइय हो । देह सु अरध राम कहु लेइ बैठाइय हो ।—तुलसी ग्र॰, पृ॰ ३ ।
५. जल का छिड़काव । उ॰—नाइ सीस पगनि असीस पाइ प्रमुदित पावड़े अरघ देत आदर से आने हैं ।—तुलसी (शब्द॰) । क्रि॰ प्र.—करना । उ॰—हरि को मिलन सुदामा आयो । विधि करि अरघ पावड़े दीदे अंतर प्रेम बढ़ायो ।—सूर (शब्द॰) । देना । उ॰—हृदय ते नहिं टरत उनके श्याम नाम सुहेत । अश्रु सलिल प्रवाह उर मनो अरघ नैनन देत ।—सूर (शब्द॰) ।
जो शुद्ध गंदक, चित्रक, मिर्च, पीपल आदि के योग से बनाई जाती है । यह गोली अजीर्ण, शूल, आमदोष, गोल आदि रोगों में दी जाती है ।
जो ^१ सर्व॰ [सं॰ य:] एक संबंधवाचक सर्वनाम जिसके द्वारा कही हुई संज्ञा या सर्वनाम के वर्णन में कुछ और वर्णन की योजना की जाती है । जैसे,—(क) जो घोडा़ आपने भेजा था वह मर गया । (ख) जो लोग कल यहाँ आए थे, वे गए । विशेष—पुरानी हिंदी में इसके सान 'सो' का व्यवाहार होता था । अब भी लोग प्राय: इसके साथ 'सो' बोलते हैं पर अब इसका व्यवहार कम होता जा रहा है । जैसे,— जो बोवैना सो काटेगा । आजकल बहुधा इसके साथ 'वह' या 'वे' का प्रयोग होता है ।
जो कोश पकने के पहले ही उबाले जाते हैं, उनका सूत कच्चा और निकम्मा होता है ।
२. टसर का बुना हुआ कपड़ा ।
जो उसके हट जाने पर विरहजल से हराभरा हो उठा था ।—इंद्र॰, पृ॰ ७ ।
जो आपे से बाहर हो (को॰) ।
४. पीड़ाग्रस्त । कष्ट में पड़ा हुआ (को॰) ।
५. विषादयुक्त । हतोत्साह । हताश (को॰) ।
६. द्रवित । तरल । पिघला हुआ (को॰) । यौ॰—विह्वलचेतन, विह्वलचेता = व्याकुल । विह्वलतनु = शिथिल शरीरवाला । विह्वलद्दष्टि, विह्वलनेत्र, विह्वललोचन = अस्थिर द्दष्टिवाला । जिसकी द्दष्टि चंचल हो ।
जो सबसे महान हो । सर्वरक्षण = जो सब का रक्षण करे या सबसे रक्षा करनेवाला । सर्वरक्षी = सबकी सुरक्षा करनेवाला । सर्ववल्लभ = सबका प्यारा । जो सबको प्रिय हो । सर्ववातसह = पोत या यान जो सभी प्रकार की वायु को सहन करने में सक्षम हो । सर्ववादिसम्मत = जिससे सभी सहमत हों । सर्व- वासक = पूर्णतः वस्त्राच्छदित । सर्वविज्ञान = सभी विषयों का ज्ञान । सर्वविज्ञानी = सभी विषयों का ज्ञाता । सर्वविनाश = सर्वनाश । सर्वविषय = जो सब विषयों से संबद्ध हो । सर्ववीर्य = समग्र शक्ति से युक्त । सर्वशंका = सब के प्रति शक की भावना । सर्वशक = दे॰ 'सर्वशक्तिमान्' । सर्वशास्त्री = सभी प्रकार के शस्त्रों से युक्त । सर्वशीघ्र = जो सबसे तीव्र या तेज हो । सर्वश्राव्य = जिसे सभी लोग सुन सके । सर्वसंपन्न = जो सभी चीजों में संपन्न या युक्त हो ।