टंक
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]टंक ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ टङ्क]
१. एक तौल लो चार माशे की होती है । विशेष—कोई कोई इसे तीन माशे या २४ रत्ती की भी मानते हैं ।
२. वह नियत मान या बाट जिससे तौल तौलकर धातु टकसाल में सिक्के बनने के लिये दी जाती है ।
३. सिक्का ।
४. मोती की तौल जो २१ १/४ रत्ती की मानी जाती है ।
५. पत्थर काटने या गढ़ने का औजार । टाँकी । छेनी ।
६. कुल्हाड़ी । परशु । फरसा ।
७. कुदाल ।
८. खड्ग । तलवार ।
९. पत्थर का कटा हुआ टुकड़ा ।
१०. डाँग ।
११. नील कपित्थ । नीला कैथ । खटाई ।
१२. कोप । क्रीध ।
१३. वर्प । अभिमान ।
१४. पर्वत का खड्डु ।
१५. सुहागा ।
१६. कोष । खजाना ।
१७. संपुर्ण जाति का एक राग जो श्री, भैरव और कान्हड़ा के योग से बना है । विशेष—इसके गाने का समय रात १६ दंड से २० दंड तक है । इसमें कोमल ऋषभ लगता है और इसका सरगम इस प्रकार है—सा रे म म प ध नि । हनुमत् के मत से स्वरग्राम है—स ग म प ध नि सा सा ।
८. म्यान ।
१९. एक काँटेदार पेड़ जिसमें बेल या कैथ के वरावर फल लगते है ।
२०. सौंदर्य (को॰) ।
२१. गुल्फ (को॰) ।
टंक ^२ संज्ञा पुं॰ [अं॰ टैंक]
१. तालाब, पानी रखने का हौज ।
टंक पु ^३ संज्ञा पुं॰ [?] अल्पांश । थोड़ा अंश । उ॰—जाको जस टंक सातो दीप नव खंड महिमंडल की कहा ब्रह्नांड ना समात है ।—भूषण॰ ग्रं॰, पृ॰ २२२ ।