टट्टी
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]टट्टी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ तटी( = ऊँचा किनारा) या सं॰ स्थात्री ( = जो खड़ी हो)]
१. बाँस की फट्टियों, सरकंडों आदि को परस्पर जोड़कर बनाया हुआ ढाँचा जो आड़, रोक या रक्षा के लिये दरवाजे, बरामदे अथवा और किसी खुले स्थान में लगाया जाता है । बाँस की फट्टियों आदि का बना पल्ला जो परदे, किवाड़ या छाजन आदि का काम दे । जैसे, खस की टट्ठी । क्रि॰ प्र॰—लगाना । मुहा॰—टट्टी की आड़ (या ओट) से शिकार खोलना = (१) किसी के विरुद्ध छिपकर कोई चाल चलना । किसी के विरुद्ध गुप्त रूप से कोई कारवाई करना । (२) छिपाकर बुरा काम करना । लोगों की द्दष्टि बनाकर कोई अनुचित कार्य करना । टट्टी का शीशा = पतले दल का शीशा । टट्टी में छेद करना = किसी की बुराई करने में किसी प्रकार का परदा न रखना । प्रकट रूप से कुकर्म करना । खुल खेलना । निर्लज्ज हो जाना । लोकलज्जा छोड़ देना । टट्टी लगाना = (१) आड़ करना । परदा खडा करना । (२) किसी के सामने भीड़ लगाना । किसी के आगे इस प्रकार पंक्ति में खड़ा होना कि उसका सामना रुक जाय । जैसे,—यहाँ क्यै टट्टी लगा रखी है, क्या कोई तमाशा हो रहा है । धोखे की टट्टी = (१) वह टट्टी जिसकी आड़ में शिकारी शिकार पर वार करते हैं । (२) ऐसी वस्तु जिसे ऊपर से देखने से उससे होनेवाली बुराई का पता न चले । ऐसी वस्तु या बात जिसके कारण लोग धोखा खाकर हानि उठावें । जैसे,—उसकी दूकान वगैरह सब धोखे की टट्टी है; उले भूलकर भी रुपया न देना । (३) ऐसी वस्तु जो ऊपर से देखने में सुंदर जान पड़े, पर काम देनेवाली न हो । चटपट टूट या बिगड़ जानेवाली वस्तु । काजू भोजू चीज ।
२. चिक । चिलमन ।
३. पतली दीवार जो परदे के लिये खड़ी की जाती है ।
४. पाखाना । क्रि॰ प्र॰—जाना ।
५. पुलवारी का तखता जो बरातों में निकलता है ।
६. बाँस की फट्टियों आदि की बनी हुई वह दीवार और छाजन जिसपर अंगूर आदि की बेलें चढ़ाई जाती हैं ।
टट्टी संप्रदाय संज्ञा पुं॰ [हिं॰ टट्टी + संप्रदाय] एक धार्मिक वैष्णव संप्रदाय जिसके संस्थापक स्वामी हरिदास जी हैं ।